International News: आखिर इन देशों में क्‍यों नहीं जाना चाहते भारतीय छात्र, तेजी से घट रही संख्‍या

विदेशों से आए छात्र अपने साथ ना केवल टैलेंट लेकर आते हैं, बल्कि यह देश की संस्‍कृति, आर्थिक व्‍यवस्‍था, समाज में भी अहम रोल निभाते हैं. 

इसलिए सदियों से छात्रों के दूसरे स्‍थानों पर जाकर पढ़ने की परंपरा चली आ रही है. लेकिन कुछ समय में कई देशों की सरकारों ने नियमों में ऐसी सख्‍ती बरती है कि भारतीय छात्रों का इन देशों से मोहभंग हो रहा है. 

अब छात्र इन देशों की यूनिवर्सिटीज में दाखिला लेने की बजाय स्‍थानीय यूनिवर्सिटीज में ही एडमिशन ले रहे हैं. इस वजह से विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में भारी गिरावट आई है.

इमिग्रेशन एक्सपर्ट हरविंदर सिंह ने बताया कि कनाडा में 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. वहीं यूके और ऑस्ट्रेलिया में 16-16 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है.

कनाडा में निज्जर हत्याकांड मामले के बाद से भारत और कनाडा के रिश्तों में खटास आई, जिस वजह से कनाडा सरकार लगातार नियमों में बदलाव कर रही है. 

हालांकि, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने पद से इस्तीफा दे दिया है. फिर भी छात्रों का विदेश जाने का रुझान कम है.

हरविंदर सिंह ने हाल ही में कनाडा सरकार द्वारा माता-पिता के वीजा पर रोक लगाने के मामले में कहा कि कुछ कैटेगरी है. इसमें पहले पेरेंट्स वीजा अप्लाई कर सकते थे.

कुछ कैटेगरी हैं, जिसमें सुपर वीजा के जरिए पेरेंट्स लंबे समय तक बच्चों के पास रह सकते थे. इस मामले को लेकर अब कनाडा सरकार ने इस लंबे समय को कुछ कम किया है.

उन्होंने कहा कि कनाडा में हाउसिंग क्राइसेस काफी ज्यादा है. इसी के चलते प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को भी पद से इस्तीफा देना पड़ा. 

कनाडा ने उतनी तेजी से खुद का विकास नहीं किया, जितनी तेजी से बच्चों को कनाडा बुलाने में किया है. कनाडा में जीडीपी ग्रोथ सहित कई बिजनेस में बढ़ोतरी होती है. 

कनाडा में लास्ट बजट की ओर ध्यान दें तो वहां पर हाउसिंग के ऊपर था और यह मुद्दा वहां पर प्रमुख तौर पर देखने को मिला.

कनाडा-भारत में आई दरार के चलते छात्रों के कनाडा जाने का रुझान काफी कम देखने को मिला. जिसके चलते भारी मात्रा में छात्रों ने स्थानीय कॉलेज में एडमिशन लेने का रुख किया. 

वहीं, पंजाब सरकार द्वारा बच्चों को नौकरी देने को लेकर हरविंदर सिंह ने कहा कि युवा हमारी पहचान हैं. अगर युवाओं की ओर ध्यान दिया जाए तो वह पंजाब में काफी बेहतर बदलाव ला सकते है.  

1991 का रिकॉर्ड देखें तो पंजाब नंबर 1 पर था, लेकिन अब 18वें से 19वें नंबर पर पहुंच गया. ऐसे में पंजाब और केंद्र सरकार अगर मिलकर काम करें तो बच्चों के लिए कुछ बेहतर बदलाव देखने को मिल सकता है.