कैसे हुई गरबा-डांडिया की शुरुआत, यहां जानिए दिलचस्प इतिहास  

हिन्‍दूओं का विशेष पर्व शारदीय नवरात्रि का आगाज 22 सितंबर से हो चुका है. जिसका समापन 01 अक्‍टूबर यानी दशमी के दिन होता है.

नवरात्रि का त्‍योहार पूरे देश में अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है. इस त्‍योहार में जगह-जगह पंडाल बनाकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है.

नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्‍सव में गरबा, डांडिया और दुर्गापूजा का आयोजन होता है. लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा है कि नवरात्रि में इन सभी कार्यक्रमों का आयोजन क्‍यों होता है? इसका क्‍या इतिहास है?  आइए जानते हैं...

नवरात्रि में गरबा और डांडिया खेलने की परंपरा बहुत पुरानी है. पहले इसे गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में खेला जाता था,लेकिन धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई. 

अब यह लगभग देशभर में खेला जा रहा है. कर्म और दीप से मिलकर बना है गरबा शब्द. शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के घड़े में कई छेद किए जाते हैं, जिसके अंदर एक दीपक जलाकर रखा जाता है. 

इसके साथ चांदी का एक का सिक्का भी रखते हैं. इस दीपक को दीप गर्भ कहते हैं. 

दीप गर्भ की स्थापना के पास महिलाएं रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मां दुर्गा के समक्ष नृत्य कर उन्हें प्रसन्न करती हैं.

बता दें कि दीप गर्भ,नारी की सृजन शक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है. इस तरह यह परंपरा आगे बढ़ी और आज सभी राज्यों में गरबा का आयोजन किया जाता है.

नवरात्रि पर डांडिया का भी आयोजन होता है. डांडिया को ‘डांडिया रास’ के नाम से भी जाना जाता है. यह गुजरात का एक लोक नृत्य है. इसकी उत्पत्ति के बारे में बात करें तो डांडिया की उत्‍पत्ति भारत से हुई है.

इसका संबंध उस युग से है जब देवी दुर्गा के सम्मान में गरबा के रूप में नृत्य किया जाता था. मान्यता है कि डांडिया मां दुर्गा और महिषासुर के बीच एक नकली लड़ाई का प्रतिनिधित्व करता है. डांडिया नृत्‍य में डांडिया की छड़ें देवी दुर्गा की तलवार का प्रतिनिधित्व करती हैं. यह गरबा के बाद किया जाता है.