देश के 53वें CJI बने जस्टिस सूर्यकांत, जानें उनके 10 बड़े फैसले

जस्टिस सूर्यकांत सोमवार को भारत के नए मुख्य न्यायाधीश बने. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद की शपथ दिलाई. शपथ लेने के बाद वह देश के लिए 53वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं.

सुप्रीम कोर्ट में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कई बड़े फैसले लिए हैं. आइए जानते हैं उनके 10 अहम फैसले...

अनुच्छेद 370 पर ऐतिहासिक फैसला जस्टिस सूर्यकांत उस पांच जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को वैध करार दिया. यह फैसला हाल के सालों के सबसे चर्चित संवैधानिक निर्णयों में शामिल है.

राजद्रोह कानून पर रोक उन्होंने उस पीठ में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने धारा 124A (राजद्रोह) पर प्रभावी रोक लगाई और केंद्र व राज्यों को इसे तब तक लागू न करने का निर्देश दिया जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा पूरी नहीं कर लेती.

पेगासस जासूसी विवाद पेगासस स्पाइवेयर मामले में जस्टिस सूर्यकांत ने जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों की विशेष समिति गठित करने के फैसले में भाग लिया. अदालत ने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को असीमित शक्तियां नहीं दी जा सकतीं.

बिहार मतदाता सूची विवाद उन्होंने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों का पूरा विवरण सार्वजनिक किया जाए, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके.

महिलाओं के अधिकार और स्थानीय निकाय शासन जस्टिस सूर्यकांत ने एक महिला सरपंच को पद से हटाने को गैरकानूनी बताते हुए बहाल किया और अपने निर्णय में कहा कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव अस्वीकार्य है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित सभी बार एसोसिएशनों में 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का निर्देश भी दिया, जो एक ऐतिहासिक कदम माना जाता है.

राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर विचार वह उस संविधान पीठ का हिस्सा हैं जो राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर रही है. इन पर अभी फैसला आना बाकी है.

पीएम मोदी की सुरक्षा चूक की जांच 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे के दौरान सुरक्षा चूक पर उन्होंने जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाने के आदेश दिए थे.

वन रैंक-वन पेंशन (OROP) OROP योजना को उन्होंने संवैधानिक मान्यता दी और इसे सही ठहराया था.

महिला अधिकारों पर मजबूत स्टैंड उन्होंने अपने अलग फैसले में कहा था कि कानूनी पेशे और संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना समय की मांग है, इसलिए बार एसोसिएशनों में आरक्षण जरूरी है.

रणवीर इलाहाबादिया मामला उन्होंने पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया को अपमानजनक टिप्पणियों पर चेतावनी दी और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब सामाजिक मर्यादाएं तोड़ने का अधिकार नहीं है.