फाल्गुन पूर्णिमा को ही क्यों किया जाता है होलिका दहन, क्या आपको पता है इसका कारण?
फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है. पंचांग के अनुसार, आज फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि है.
लेकिल क्या आप जानते हैं कि फाल्गुन माह की पूर्णिमा को ही होलिका दहन क्यों किया जाता है. आइए जानते हैं...
हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था, जबकि उसका पुत्र विष्णु का भक्त था. इस कारण हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के कई प्रयास किया, लेकिन असफल रहा.
तब उसकी बहन ने आकर बताया कि उसे तो आग से न जलने का वरदान मिला हुआ है. मैं अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाऊंगी और प्रह्लाद उसी आग में जल कर भस्म हो जाएगा.
यह विचार राजा हिरण्यकश्यप को भी समझ में आया और लकड़ी का बड़ा सा ढेर बना कर उसमें होलिका अपने भतीजे को गोद में लेकर बैठ गयी. प्रह्लाद तो भगवान का प्रिय भक्त था और पग पग पर वही उसकी रक्षा कर रहे थे.
इसलिए वह आग से जरा भी भयभीत नहीं हुआ और भगवान का मंत्र 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करता रहा. इधर होलिका बैठी तो लकड़ी में आग लगा दी गयी.
देखते ही देखते लकड़ी के साथ ही होलिका भी जल गयी लेकिन भक्त प्रह्लाद तो अपने प्रभु का स्मरण करता रहा उसे कुछ भी नहीं हुआ.
दरअसल, होलिका का यह वरदान आग से उस स्थिति में बचाने के लिए था, जब वह अकेली हो किंतु वह तो अपने भतीजे को गोद में लेकर उसे जलाने की नीयत से बैठी थी जिसके कारण भगवान का दिया वरदान भी उसके लिए निष्प्रभावी हो गया.
तभी से लोग इस पर्व को होलिका दहन के रूप में मनाने लगे. जिस दिन शाम के समय लकड़ी के ढेर पर होलिका अपने भतीजे को लेकर बैठी थी वह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी.
इसलिए हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका दहन के रूप में बुराइयों को जलाने की परंपरा है. भक्त प्रह्लाद के आग से बचकर निकल आने के बाद लोग अगले दिन अबीर गुलाल लगाकर लोग होली मनाते हैं.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और ज्योतिष गणनाओं पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)