सेवा और करुणा के प्रतीक थे गुरु हर कृष्ण साहिब जी, जानिए उनके बलिदान की गाथा
गुरु हर कृष्ण, सिख धर्म के आठवें गुरु थे – सेवा और करुणा के प्रतीक. उनका जन्म 22 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब, पंजाब में हुआ था.
गुरु हर राय जी के सबसे छोटे पुत्र के रूप में उन्हें मात्र 5 वर्ष की आयु में गुरुगद्दी मिली. गुरु जी ने बचपन से ही विनम्रता, ज्ञान और आध्यात्मिकता का परिचय दिया.
दिल्ली में चेचक और हैजा फैलने पर उन्होंने बीमारों की सेवा को अपना धर्म समझा. वे रोगियों को अमृत जल देकर ठीक करते और दुःखियों को ढांढस बंधाते.
गुरु जी ने जाति-पाति का भेद मिटाकर सबकी सेवा की – यही उनका सच्चा संदेश था.
उनकी करुणा और चमत्कारी स्पर्श के कारण लोग उन्हें "बाला पीर" कहने लगे.
गुरु हर कृष्ण जी ने कष्ट झेलकर भी सेवा नहीं छोड़ी और खुद चेचक से ग्रसित हो गए.
गुरुद्वारा बंगला साहिब वही पावन स्थल है जहां गुरु जी ने सेवा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया.
प्रकाश गुरुपुरब पर देश-विदेश में कीर्तन, अरदास, और लंगर का आयोजन होता है.
सिख संगत इस दिन गुरु जी की शिक्षाओं को याद कर सेवा के कार्यों में जुटती हैं.