आखिर तिरंगे को गांधी जी ने क्यों नहीं दी थी सलामी, चौंका देगी वजह
हर साल 15 अगस्त को भारत अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है. ये दिन हर भारतीय के लिए बेहद खास है.
इस दिन लोग गर्व से तिरंगा फहराते हैं. तिरंगा हमारी शान का प्रतीक है. लेकिन आज हम आपको तिरंगे से जुड़ा एक किस्सा बताएंगे.
दरअसल, एक बार महात्मा गांधी ने तिरंगे को सलामी देने से इंकार कर दिया था. आइए जानते हैं कि गांधी जी ने ऐसा क्यों किया...
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में तीन रंग केसरिया, सफेद और हरा और बीच में अशोक चक्र देश की एकता, शांति और प्रगति का संदेश देते हैं.
1931 में गांधी जी ने तिरंगे के डिजाइन को अपनी मंजूरी दे दी और इसे कांग्रेस के अधिवेशनों में फहराया जाता था.
वहीं, 1947 में संविधान सभा ने तिरंगे के डिजाइन में बदलाव करने का फैसला किया.
जिसमें पिंगली वेंकैया द्वारा डिजाइन किए गए नए तिरंगे में चरखे की जगह सम्राट अशोक के धर्म चक्र को शामिल किया गया.
जिससे गांधी जी बहुत दुखी हुए. उस दौरान वो लाहौर में थे. संविधान सभा में कुछ गैर-कांग्रेसी सदस्यों ने कहा कि चरखा कांग्रेस पार्टी का प्रतीक है और तिरंगे में इसे शामिल करना अनुचित है.
इस पर गांधी जी ने नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा, 'मैं इस झंडे को सलामी नहीं दूंगा, जिसमें चरखा नहीं है.'
हालांकि, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल ने उन्हें समझाया कि अशोक चक्र भी अहिंसा और धर्म का प्रतीक है. तब जाकर गांधी जी ने नए डिजाइन को स्वीकार किया.