क्या है आशूरा के दिन का महत्व, आखिर क्यों गम में डूब जाते हैं मुसलमान?
मुहर्रम इस्लामी हिजरी कैलेंडर का पहला महीना है, जो चांद के चक्र पर आधारित होता है. इसमें एक साल में 12 महीने और 354 या 355 दिन होते हैं.
इस्लाम में इसे रमजान के बाद दूसरा सबसे पवित्र माह माना जाता है. अरबी में 'मुहर्रम' शब्द का अर्थ 'निषिद्ध' होता है.
वर्ष के इस महीने के दौरान प्राचीन अरब किसी भी युद्ध और झगड़े में शामिल होने से बचते थे और अपना समय अल्लाह की याद में समर्पित करते थे.
मुहर्रम के 10वें दिन को आशूरा कहा जाता है. ये कई कारण से मुस्लिम समुदाय के लिए महत्वपूर्ण होता है.
ऐसा माना जाता है कि आशूरा के दिन, पैगंबर मूसा ने अल्लाह की मदद से क्रूर फिरौन को सफलतापूर्वक हराया और पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की.
आशूरा का दिन लगभग 622 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद के मक्का से मदीना प्रवास का भी प्रतीक है, क्योंकि उन्हें और उनके अनुयायियों को इस्लाम का पालन करने और प्रचार करने के लिए क्रूरतापूर्वक निशाना बनाया गया था.
यह भी माना जाता है कि इसी दिन पैगंबर नूह अपने जहाज पर निकले थे.
बता दें कि आशूरा के दिन को प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. दरअसल, कर्बला की लड़ाई में यज़ीद प्रथम की सेना द्वारा पैगंबर मोहम्मद के पोते और हजरत अली के बेटे हजरत इमाम हुसैन की हत्या कर दी गई थी.
इसी के प्रतीक के तौर पर ये दिन मनाया जाता है. इस दिन शिया मुसलमान कर्बला की उस भयानक घटना को याद करके शोक मनाते हैं.