आखिर कंधे पर ही क्यों रखा जाता है कांवड़, जानिए रहस्य
11 जुलाई से भगवान शिव को समर्पित सावन महीने की शुरुआत हो चुकी है. इस पावन महीने में शिव भक्त अपने अराध्य की विधिवत पूजा करते हैं.
सावन की शुरुआत होते ही कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाती है. इस दौरान शिव भक्त दूर-दूर से पवित्र नदियों का जल कांवड़ में भरकर लाते हैं और शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.
कांवड़िये कांवड़ में जल भरकर उसे अपने कंधे पर रखकर शिवालय तक लेकर जाते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर कांवड़ को कंधे पर ही क्यों रखा जाता है...
कांवड़ यात्रा की शुरुआत के पीछे कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि कांवड़ यात्रा की शुरूआत भगवान परशुराम ने की थी.
वहीं, रावण से भी कांवड़ यात्रा का संबंध जोड़ा जाता है. माना जाता है कि रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था.
एक बार उसने कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया. जिसके कारण भगवान शिव क्रोधित हो गए.
हालांकि, जब रावण को अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गंगाजल से अभिषेक किया था.
भोलेनाथ का अभिषेक करने के लिए रावण ही पहली बार एक विशेष विधि से गंगाजल लाया था. इस जल को लाने के लिए उसने कांवड़ का उपयोग किया था. कांवड़ को उसने अपने कंधे पर लाया था.
तभी से शिव भक्त इस परंपरा का पालन करने के लिए और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वो कावड़ में गंगाजल भरकर और इसे कंधे पर रखकर चलते हैं.