कब से हो रहा मतदाता स्याही का इस्तेमाल, जानें इंडेलिबल इंक का असली रहस्य

बिहार चुनाव को लेकर जोरों-शोरों से तैयारियां चल रही हैं. पक्ष-विपक्ष अपनी पार्टी के लिए जमकर प्रचार कर रहे हैं. 

वहीं, वोटर्स अपने पसंदीदा नेता को वोट देने का इंतजार कर रहे हैं. हम सभी ने ये देखा होगा कि वोटिंग के वक्त उंगली पर स्याही लगाई जाती है.

ये स्याही सिर्फ निशान नहीं, लोकतंत्र की मुहर है, जो हर वोट को पहचान देती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस स्याही का चुनाव से क्या कनेक्शन है... 

भारत में जब चुनाव होता है, तो वोटर की पहचान स्याही की लाइन से होती है. बाएं हाथ की तर्जनी पर लगाई जाने वाली ये स्याही भारत की चुनावी पारदर्शिता की पहचान है. 

इस स्याही को अमिट स्याही या Indelible Ink कहा जाता है. जिसका मतलब है कि इस स्याही को जितना रगड़ो, पानी डालो फिर भी नहीं मिटेगी. 

भारत में इस खास स्याही का उत्पादन केवल दो जगहों पर होता है- मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (Mysore Paints & Varnish Ltd), कर्नाटक और दूसरा है- रायुडू लेबोरेटरी, हैदराबाद, तेलंगाना.

जिसमें से चुनाव में मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है. 

भारत में पहली बार इस स्याही का इस्तेमाल 1962 के लोकसभा चुनाव में हुआ था. तब से ये आज जत हर चुनाव में अनिवार्य है.

इस स्याही में 10 से 18 प्रतिशत तक सिल्वर नाइट्रेट होता है. जब ये उंगली पर लगाई जाती है, तो हमारे शरीर की त्वचा में मौजूद Sodium Chloride के साथ यह प्रतिक्रिया करती है और सिल्वर क्लोराइड बना देती है. सिल्वर क्लोराइड की खास बात ये है कि यह पानी में घुलता नहीं है.