CANNES FILM FESTIVAL: लोजनित्सा की ‘Two Prosecutors’ ने उजागर किए स्टालिन युग के अत्याचार, दिखाई USSR की असल कहानियां

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विश्व प्रसिद्ध यूक्रेनी फिल्मकार सर्जेई लोजनित्स ने अपनी नई फिल्म ‘टु प्रोसेक्यूटर्स ‘ में 88 साल पहले के रुस में घटित राजनीतिक घटनाओं के माध्यम से आज के रुस की छवियां दिखाने की कोशिश की है. तब स्टालिन थे आज पुतिन है. हालांकि कान फिल्म समारोह में दिखाई गई उनकी पिछली फिल्में ( अ जेंटिल क्रिएचर, 2017 और ‘ डोनबास, 2018) भी इसी विषय पर थी.
यह फिल्म एक राजनैतिक थ्रिलर है जो हमें 1937-38 के रुस में स्तालिन युग के उस खौफनाक दौर में ले जाती है जब झूठे आरोप लगाकर और महान सोवियत क्रांति का गद्दार होने के संदेह में करीब दस लाख निर्दोष नागरिकों को यातना देकर मार डाला गया था. सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी यानि कोमिटेट गोसुदार्स्तवेन्वाय बेजोपास्नोस्ती ( 13 मार्च 1954 से 3 दिसंबर 1991) की स्थापना से पहले एनकेवीडी ( 10 जुलाई 1934 से 15 मार्च 1946) नामक एजेंसी होती थी जिसने दस लाख निर्दोष लोगों को मारा था. केजीबी के खत्म होने के बाद अब जो सरकारी खुफिया एजेंसी 3 अप्रैल 1995 से रूस में कार्यरत हैं और वहीं सब कारनामे करती है जो कभी केजीबी करती थी, उसे एफएसबी( फेडेरल सेक्युरिटी सर्विस ) कहा जाता है.

रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जार्जी डेमिडोव की स्टोरी

लोजनित्स का कहना है कि यह फिल्म रूस के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और राजनीतिक कैदी जार्जी डेमिडोव के एक उपन्यास पर आधारित है जिन्होंने करीब चौदह साल जेल में बिताए और भयानक यातनाएं झेलीं है. उन्होंने रुस के जेलों में राजनैतिक कैदियों की भयानक प्रताड़ना का रोज़नामा लिखा है. यह उपन्यास 1969 में लिखा गया था जब रुसी शासन की तानाशाही के खिलाफ कोई भी आवाज उठाने की हिम्मत नहीं करता था. इस उपन्यास की पांडुलिपि को तब रुसी खुफिया एजेंसी के जी बी ने ज़ब्त कर लिया था. लेखक की मृत्यु के बाद 1980 में लेखक की बेटी के अनुरोध पर यह पांडुलिपि लौटाई गई. पर यह पांडुलिपि 2009 तक छप नहीं सकी. लोजनित्स का कहना है कि इस कहानी को दुनिया के सामने आने के लिए 40 साल इंतजार करना पड़ा.

कान फिल्म फेस्ट का यूक्रेन को एकतरफा समर्थन

जब से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है तब से कान फिल्म फेस्टिवल एकतरफा यूक्रेन का समर्थन कर रहा है और इसीलिए यहां रुसी फिल्में और फिल्मकार लगभग प्रतिबंधित है. दो साल पहले कान फिल्म समारोह के उद्घाटन समारोह में यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादिमीर जेलेंस्की का संदेश सुनाया गया था. इस बार न सिर्फ सर्जेई लोजनित्स की यह फिल्म मुख्य प्रतियोगिता खंड में दिखाई गई है वल्कि उद्घाटन के दिन यूक्रेन की तीन फिल्मों का विशेष प्रदर्शन किया गया जिसमें एक फिल्म राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की के जीवन पर आधारित है.

‘टु प्रोसेक्यूटर्स’ मूवी में क्या देखने लायक?

‘टु प्रोसेक्यूटर्स’ रूस के एक दूर दराज के छोटे से शहर में अलेक्जेंडर कोर्निएव नामक एक युवा प्रोसेक्यूटर की कहानी है, जिसकी नई-नई नियुक्ति हुई है. उसके पास अचानक एक दिन कार्ड बोर्ड के टुकड़े पर खून से लिखा हुआ पत्र पहुंच जाता है जिसमें न्याय की गुहार लगाई गई है. पत्र लिखने वाला इंसान स्टेपनिक बोल्शेविक पार्टी का कार्यकर्ता हैं जो अपने देश से बेइंतहा प्यार करता है. स्थानीय खुफिया पुलिस एन के वी डी द्वारा लाख प्रताड़ना दिए जाने के बावजूद वह गद्दारी के झूठे हलफनामे पर दस्तखत नहीं करता है. जेलर ने एक कैदी की ड्यूटी लगाई है कि वह उन कैदियों द्वारा कामरेड स्टालिन को लिखे सभी पत्रों को चुपचाप सावधानी से जला दे. ऐसे हजारों पत्रों को जला दिया जाता है जिसमें कैदियों ने स्टालिन से न्याय की गुहार लगाई है कि उनके मामले की दोबारा सुनवाई हो. यहां से युवा प्रोसिक्यूटर अलेक्जेंडर कोर्निएव की एक ऐसी यात्रा शुरू होती है जिसमें हम इतिहास के बड़े बड़े गुनाह होते देखते हैं जिसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है. कोर्निएव उस खून से लिखे पत्र को लेकर कानूनी तरीके से जेल में स्टेपनिक से मिलता है. वहां उसे गैर कानूनी तरीके से राजनीतिक कैदियों की प्रताड़ना और झूठे मामले में फंसाने की अनगिनत हृदयविदारक कहानियां पता चलती है. स्टेपनिक अपने कपड़े उतार कर उसे प्रताड़ना और हिंसा के निशान दिखाता है.

‘मास्को में बैठे उच्चाधिकारियों को अन्याय का पता नहीं’

प्रोसिक्यूटर अलेक्जेंडर कोर्निएव इस भ्रम में हैं कि शायद मास्को में बैठे उच्चाधिकारियों को इस अन्याय का पता नहीं है. वह उन्हें न्याय दिलाने के लिए मास्को की यात्रा करता है और रुस के सबसे बड़े अधिकारी मुख्य प्रोसेक्यूटर विशिंस्की से मिलने में सफल हो जाता है. जैसे ही वह विशिंस्की को खुफिया पुलिस एनकेवीडी के अत्याचारों की सारी बातें बताता है, वह खुद जांच के घेरे में आ जाता है. विशिंस्की उसे इन अत्याचारों के मेडिकल सबूत इकट्ठा करने के बहाने टाल देता है और वापस भेज देता है. ट्रेन में यात्रियों के भेष में खुफिया पुलिस के अधिकारी उसे घेरे हुए है और जब उसका शहर आता है तो वे उसे धोखे से कार में लिफ्ट देने के बहाने अगवा कर लेते हैं. वे उसे उसके खिलाफ मास्को आफिस से जारी वारंट दिखाकर उसे उसी भयानक जेल में ले जाते हैं जहां से फिल्म की कहानी शुरू हुई थी. अंतिम दृश्य में हम देखते हैं कि एक गाड़ी जेल के अंदर जा रही है और जेल का विशाल फाटक बंद हो रहा है.
अपनी पिछली फिल्मों की तरह सर्जेई लोजनित्स ने फिल्म में सबकुछ यथार्थवादी रखा है और ओलेग मुतू की सिनेमैटोग्राफी बहुत उम्दा है. लाटीविया की राजधानी रीगा में फिल्म की शूटिंग हुई है. कई दृश्य बहुत ही प्रभावशाली है. सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय किया है खासकर युवा प्रोसेक्यूटर की भूमिका में अलेक्जेंडर कुजनेत्सोवा और कैदी की भूमिका में अलेक्जेंडर फिलिपेंको के पावरहाउस अभिनय बेमिसाल है. ट्रेन यात्रा में प्रथम विश्व युद्ध की कहानियों को गीतों में सुना रहा एक पूर्व सैनिक अपने अभिनय से सबका ध्यान खींचता है. जेल के भीतर और बाहर के दृश्य बहुत प्रभावशाली है. लोजनित्स ने स्टाइलाइज्ड शैली में कम से कम दृश्यों में फोकस किया है. कुल मिलाकर कर रुस में स्टालिन युग की भूला दी गई यह कहानी आज के रुस में ब्लादिमीर पुतिन के शासन तक आती हैं.
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