देश का कुल मछली उत्पादन (Fish Production) 2013-14 में 96 लाख टन था, जो बढ़कर 2024-25 में 195 लाख टन तक पहुंच गया है. यानी बीते एक दशक में इसमें करीब 104% की वृद्धि हुई है. इसी दौरान अंतर्देशीय मत्स्य पालन में भी उल्लेखनीय वृद्धी दर्ज की गई है, जो 61 लाख टन से बढ़कर 147.37 लाख टन हो गया है.
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, 22 जुलाई तक मत्स्य विभाग ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 21,274.16 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी है. वहीं, प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि योजना (PM-MKSSY) के तहत अप्रैल तक 11.84 करोड़ रुपये शीघ्र कार्यान्वयन के लिए स्वीकृत किए जा चुके हैं.
भारत बना दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2025 तक मछुआरों, सूक्ष्म उद्यमों, मत्स्यपालक उत्पादक संगठनों और निजी कंपनियों समेत 26 लाख से अधिक हितधारक राष्ट्रीय मत्स्य पालन डिजिटल प्लेटफॉर्म (NFDP) से जुड़ चुके हैं. भारत वर्तमान में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन में करीब 8% हिस्सेदारी रखता है.
यह क्षेत्र विशेष रूप से तटीय और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लाखों परिवारों के लिए भोजन, रोजगार और आय का अहम साधन बना हुआ है. बीते एक दशक में भारतीय मत्स्य पालन क्षेत्र ने न केवल उत्पादन के पैमाने में, बल्कि उसकी तकनीक और पद्धति में भी उल्लेखनीय बदलाव देखे हैं.
मत्स्य पालन को मिला अब तक का सबसे बड़ा बजट
मत्स्य पालन विभाग ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 29 जुलाई तक 17,210.46 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को समर्थन दिया है. आंकड़ों के अनुसार, जून 2025 तक, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मछुआरों और मछली पालकों को 4.76 लाख किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) जारी किए जा चुके हैं, जिनका कुल लोन वितरण 3,214.32 करोड़ रुपए है. केंद्रीय बजट 2025-26 में मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए अब तक का सबसे अधिक 2,703.67 करोड़ रुपए का कुल वार्षिक बजटीय समर्थन प्रस्तावित किया गया है.
सिक्किम-मेघालय में जैविक मत्स्य पालन समूह
विभाग ने देश भर में 34 मत्स्य पालन समूहों को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया है. इसमें सिक्किम और मेघालय में समर्पित जैविक मत्स्य पालन समूह शामिल हैं, जो पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हैं. भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र मजबूत नीतिगत समर्थन, आधुनिक तकनीकों और समावेशी पहलों के माध्यम से एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है.
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