Justice B.R. Gavai In Mauritius: हिंद महासागर में स्थित द्वीप राष्ट्र मॉरीशस में भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई (Justice B.R. Gavai) ने सर मॉरीस रॉल्ट स्मारक व्याख्यान-2025 का उद्घाटन किया. उन्होंने वहां ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’ विषय पर संबोधन दिया. इस आयोजन में मॉरीशस के राष्ट्रपति धर्मबीर गोखुल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम, मुख्य न्यायाधीश रेहाना मुंगली गुलबुल और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे. यह व्याख्यान मॉरीशस बार एसोसिएशन और न्यायिक एवं विधिक अध्ययन संस्थान द्वारा आयोजित किया गया.
भारत-मॉरीशस के संबंध विशेष
जस्टिस बी.आर. गवई ने भारत और मॉरीशस के संबंधों पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि 1729 में फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासकों द्वारा पांडिचेरी से भारतीय कारीगरों को मॉरीशस लाया गया, और बाद में ब्रिटिश शासन (1834-1900) में लगभग 5 लाख भारतीय मजदूरों को वहां ले जाया गया. इन मजदूरों ने कठिनाइयों के बावजूद मॉरीशस को अपना घर बनाया और अपनी संस्कृति को वहां समृद्ध किया.
महात्मा गांधी की 156वीं जयंती (2 अक्टूबर) के संदर्भ में, उन्होंने महात्मा गांधी के मॉरीशस (1901) में दिए गए शिक्षा, सशक्तिकरण और भारत से जुड़ाव के संदेशों का उल्लेख किया. मॉरीशस का राष्ट्रीय दिवस (12 मार्च) भी महात्मा गांधी के दांडी नमक मार्च को समर्पित है.
सर मॉरीस रॉल्ट की विरासत
सर मॉरीस रॉल्ट एक प्रसिद्ध न्यायविद थे. 1920 में मॉरीशस (Mauritius) में जन्मे रॉल्ट ने द्वितीय विश्व युद्ध में रॉयल एयर फोर्स में सेवा की और बाद में लंदन में कानून का अध्ययन किया. वे 1949 में बैरिस्टर बने और 1978-1982 तक मॉरीशस के मुख्य न्यायाधीश रहे. उन्होंने मृत्युदंड को खत्म करने का विधेयक पेश किया, जो बाद में पारित हुआ. 1982 में, जब संसद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की कोशिश की, रॉल्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित किया और कहा कि ‘रूल ऑफ लॉ’ ही तानाशाही और अराजकता से रक्षा करता है.
जस्टिस बी.आर. गवई ने ‘रूल ऑफ लॉ’ को परिभाषित करते हुए कहा कि यह शासकों को भी कानून के अधीन रखता है, न कि केवल कानून से शासित करता है. अरस्तू से लेकर ए.वी. डाइसी तक, इस सिद्धांत ने लोकतंत्र को मजबूत किया है. भारत में, महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इसे नैतिकता और न्याय से जोड़ा. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 32 ने समानता और मौलिक अधिकारों की रक्षा की, जबकि केसवंनंद भारती (1973) मामले में शासन के नियम को संविधान की मूल संरचना माना गया.
‘न्यायाधीश नहीं बन सकती कार्यपालिका’
हाल के वर्षों में, सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो (तीन तलाक), जोसेफ शाइन (व्यभिचार कानून), और बिलकिस याकूब रसूल (दंडमुक्ति रद्द) जैसे मामलों में ‘रूल ऑफ लॉ’ को विस्तार दिया. 2024 में “बुलडोजर जजमेंट” में, जस्टिस बी.आर. गवई (Justice B.R. Gavai) ने दोषी ठहराए बिना घरों को ध्वस्त करने को असंवैधानिक घोषित किया, यह दर्शाते हुए कि कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं बन सकती. जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि ‘रूल ऑफ लॉ’ एक स्थिर सिद्धांत नहीं, बल्कि पीढ़ियों के बीच संवाद है. भारत और मॉरीशस, अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ, इस सिद्धांत को न्याय और समानता के लिए उपयोग करते हैं. इस आयोजन ने दोनों देशों के बीच मित्रता और सहयोग को और मजबूत किया.