पिछले एक वर्ष में कंपनियों में काम करने वाले उन कर्मचारियों की संख्या में गिरावट आई है, जिन्हें अपनी सैलरी अनुचित लगती थी। यह आंकड़ा 31% से घटकर 27% पर आ गया है. मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि दुनियाभर में कर्मचारियों की फेयर सैलरी को लेकर धारणा में सुधार देखने को मिल रहा है. ह्यूमन कैपिटल मैनेजमेंट कंपनी एडीपी (ADP) की रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में शामिल 34 बाजारों में भारत सबसे आगे रहा है. रिपोर्ट बताती है कि भारत में केवल 11% कर्मचारी ही अपनी सैलरी से असंतुष्ट हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि अलग-अलग बाजारों में अंतर देखने को मिला है. जहां, दक्षिण कोरिया और स्वीडन में पे फेयरनेस सेंटीमेंट क्रमशः 45% और 39% के साथ सबसे अधिक बना हुआ है. अलग-अलग देशों में जेंडर पे गैप की भी जानकारी मिलती है. 34 में से 15 मार्केट में 30% से अधिक महिलाओं के लिए अनफेयर पे दर्ज किया गया है, जबकि पुरुषों के लिए अनफेयर पे केवल पांच मार्केट में दर्ज किया गया है. हालांकि, भारत उन कुछ बाजारों में से एक बना हुआ है, जहां महिलाओं की तुलना में ऐसे पुरुषों की संख्या अधिक है, जिन्हें लगता है कि उनकी सैलरी उचित नहीं है.
भारत में सैलरी को लेकर असंतोष (पे फेयरनेस डिससैटिस्फैक्शन) उम्र के साथ घटता दिख रहा है. 18 से 26 वर्ष के कर्मचारियों में यह असंतोष 13% है, जबकि 55 वर्ष और उससे अधिक उम्र के कर्मचारियों में केवल 5% दर्ज किया गया है. यह ट्रेंड वैश्विक पैटर्न के विपरीत है. एडीपी इंडिया और साउथईस्ट एशिया के मैनेजिंग डायरेक्टर राहुल गोयल ने कहा कि जब कर्मचारियों को उचित सैलरी मिलती है, तो वे अपने काम में बेहतर ढंग से ढलते हैं, प्रेरित रहते हैं और संस्थान के प्रति वफादार रहते हैं. इसलिए फेयर पे केवल एक कम्पनसेशन कनवर्सेशन से कहीं अधिक बढ़कर है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पे फेयरनेस सेटीमेंट में भारत की लीडिंग पॉजिशन एक समान पे करने की प्रथाओं में हो रहे सुधार को दर्शाती है. लेकिन, नियोक्ताओं को आवश्यक है कि वे इस फेयरनेस को केवल सैलरी तक सीमित न रख कर अवसरों, विकास और पहचान तक बढ़ाए ताकि संस्थान में कर्मचारियों को लंबे समय तक बनाया रखा जा सके.