ढाकाः एक बार फिर बांग्लादेश की राजधानी ढाका की सड़कें प्रदर्शनकारियों से पटी पड़ी हैं. राजधानी के अलावा कई अन्य शहरों में भी शनिवार को भारी प्रदर्शन हुए. दरअसल, हजारों लोग पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद अब उन्हें देश में लाकर फांसी दिए जाने की मांग कर रहे हैं. हसीना को 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान कथित हत्याकांड के लिए गत 17 नवंबर को फांसी की सजा सुनाई गई थी. अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए यह सजा सुनाई थी. हालांकि, इस दौरान हसीना कोर्ट में उपस्थित नहीं थीं.
बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी पार्टी ने निकाली रैली
अदालत द्वारा शेख हसीना को फांसी की सजा दिए जाने के इस फैसले के बाद से बांग्लादेश में तनाव चरम पर है. आज (रविवार) को मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी ने संयुक्त रैली का आयोजन किया, जिसमें हसीना की प्रत्यर्पण और फांसी की मांग तेज हुई. प्रदर्शनकारियों ने ढाका विश्वविद्यालय परिसर से लेकर शाहबाग चौराहे तक मार्च निकाले. छात्र संगठनों, पीड़ित परिवारों और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने ‘हसीना को फांसी दो’, ‘भारत से प्रत्यर्पित करो’ और ‘न्याय सुनिश्चित करो’ के नारे लगाए. एक प्रदर्शनकारी ढाका विश्वविद्यालय के छात्र आर राफी ने कहा, “हसीना ने हमारे भाइयों-बहनों की हत्या का आदेश दिया. फांसी ही न्याय है.”
रैली में शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग
रैली में बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि यह फैसला “तानाशाही का अंत” दर्शाता है और भारत को “भागी गुंडे” को सौंपना चाहिए. जमात-ए-इस्लामी के महासचिव मिया गोलाम परवार ने इसे “1.8 करोड़ लोगों की आकांक्षा” बताया, लेकिन पूर्व ट्रायल्स की तुलना में इसकी निष्पक्षता पर जोर दिया. 2024 के जुलाई-अगस्त आंदोलन की पृष्ठभूमि में यह सजा आई, जब सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत कोटा बहाल करने के खिलाफ छात्र विरोध कर रहे थे. हसीना सरकार पर अवैध बल प्रयोग का आरोप लगा, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 1,400 से अधिक लोग मारे गए और 14,000 घायल हुए.
फरवरी 2026 में बांग्लादेश में होना है चुनाव
फरवरी 2026 में अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने चुनाव कराने का वादा किया है, लेकिन अवामी लीग को प्रतिबंधित करने से तनाव बढ़ गया है. हसीना के समर्थक अवामी लीग ने 13-17 नवंबर को ‘लॉकडाउन’ का आह्वान किया था, जिससे ढाका में यातायात ठप हो गया और बसें जलाई गईं. रविवार की रैली में सात अन्य दलों के साथ जमात ने चुनाव सुधारों की मांग की, लेकिन अहमदिया समुदाय को ‘काफिर’ घोषित करने का विवादास्पद प्रस्ताव भी उठा. पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लिया, जिसमें दर्जनों लोग घायल हुए. ‘मौलिक बांग्ला’ संगठन ने शाहबाग में हसीना की प्रतीकात्मक फांसी का मंचन किया. पूर्व आईजीपी चौधरी अब्दुल्लाह अल-मामुन ने गवाही में हसीना के खिलाफ बयान दिया, लेकिन उन्हें हल्की सजा मिली.
फैसले को हसीना ने बताया है राजनीतिक बदला
अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने हसीना के खिलाफ चलाए गए इस ट्रायल को “अनुचित” बताया, जबकि संयुक्त राष्ट्र ने न्याय की मांग की, लेकिन उन्हें फांसी का विरोध किया. वहीं शेख हसीना ने मौत की सजा मिलने के बाद इसे “राजनीतिक बदला” कहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अवामी लीग के बहिष्कार से चुनाव पूर्व अस्थिरता बढ़ा सकता है. पीड़ित परिवारों ने कहा, “फांसी के बिना न्याय अधूरा है.” बीएनपी और जमात की रैली ने एकजुटता दिखाई, लेकिन इस्लामी कट्टरपंथ के आरोपों से जटिलता बढ़ी.

