NISAR mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और नासा की साझेदारी से एक नया अंतरिक्ष मिशन तैयार हो चुका है, जो अंतरिक्ष के इतिहास में एक अहम पड़ाव साबित होने जा रहा है. यह मिशन न केवल भारत और अमेरिका के वैज्ञानिक समुदाय के बीच सहयोग को नई दिशा देगा, बल्कि पृथ्वी से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियों को भी सामने लाएगा.
इस मिशन का नाम है ‘निसार’ (NISAR), जो अगले कुछ सालों में हम सभी के लिए एक बड़ा और रोमांचक अनुभव बनने वाला है. निसार मिशन के प्रक्षेपण का समय 30 जुलाई, 2025 को शाम 5:40 बजे निर्धारित है. इसके बाद, रॉकेट 18 मिनट में उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजेगा.
क्यों हो रहा प्रक्षेपण?
लॉन्च की उलटी गिनती मंगलवार दोपहर 2:10 बजे शुरू हो गई, जिसमें 27.5 घंटे तक ईंधन भरने और सिस्टम जांच जैसे कार्य शामिल हैं. इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने इसे भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग का ऐतिहासिक क्षण बताया है.
वैश्विक पृथ्वी अवलोकन के लिए एक ऐतिहासिक कदम के रूप में ये काम किया जा रहा है. नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) उपग्रह 30 जुलाई, 2025 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत के जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट के जरिए प्रक्षेपित किया जाएगा. पृथ्वी की उच्च-रिज़ॉल्यूशन, सभी मौसमों में, दिन-रात की तस्वीरें प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है.
क्या है निसार की खासियत?
- शुरुआत: इस मिशन के लिए नासा और इसरो के बीच समझौता 30 सितंबर 2014 को हुआ था.
- लॉन्च डेट: सैटेलाइट को 30 जुलाई 2025 को शाम 5:40 बजे श्रीहरिकोटा से GSLV-Mk II रॉकेट के ज़रिए लॉन्च किया जाएगा.
- कुल लागत: मिशन पर कुल 1.5 अरब डॉलर (लगभग ₹12,500 करोड़) का निवेश किया गया है.
- भारत का योगदान: इसरो की हिस्सेदारी ₹469.4 करोड़ है.
- उपग्रह का वजन: निसार का कुल वजन 2,392 किलोग्राम है.
बदलावों की सटीक करेगी निगरानी
यह दुनिया के पहले दोहरे-आवृत्ति रडार (नासा का L-बैंड और इसरो का S-बैंड) से लैस सैटेलाइट है. यह 242 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र को स्कैन करेगा और हर 12 दिन में पृथ्वी की हाई-रिजॉल्यूशन, दिन-रात और हर मौसम में तस्वीरें प्रदान करेगा. यह सैटेलाइट भूकंप, भूस्खलन, ग्लेशियर पिघलने, जंगल कटाई और मिट्टी की नमी जैसे बदलावों की सटीक निगरानी करेगा. इससे जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन में मदद मिलेगा.
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