ट्रंप की नई गाइडलाइन का असर, अमेरिका जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में भारी गिरावट, जानें आंकड़ें!

Washington: अमेरिकी सरकार की नई गाइडलाइन से वहां भारतीय छात्रों की संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है. हाल ही में जारी अमेरिकी वाणिज्य विभाग के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक अगस्त 2025 में अमेरिका आने वाले भारतीय छात्रों की संख्या केवल 41,540 रही जो पिछले साल के मुकाबले 44% कम है. अब विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या 15% तक सीमित और किसी एक देश के छात्रों को केवल 5% तक रखने का निर्देश दिया गया है. यानी अगर आप भारतीय छात्र हैं तो आपकी संख्या पहले जैसी नहीं रह सकती.

अब टेक इंडस्ट्री में मंदी और लेऑफ्स ने छात्रों की बदल दी है सोच

दरअसल, भारत के छात्रों के लिए अमेरिका कभी सपनों की दुनिया जैसा लगता था. जहां सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि करियर बनाने के मौके भी मिलते थे. लेकिन, अब हालात बदलते दिख रहे हैं. अधिकतर भारतीय छात्र अमेरिका में कंप्यूटर साइंस (CS) या टेक्नोलॉजी की पढ़ाई करने जाते हैं. लेकिन अब टेक इंडस्ट्री में मंदी और लेऑफ्स की खबरों ने छात्रों की सोच बदल दी है. सवाल ये उठता है कि क्या अमेरिकी शिक्षा का आकर्षण खत्म हो रहा है..? नहीं.

91% अंतरराष्ट्रीय छात्र अभी भी अमेरिका में पढ़ाई करने की बना रहे हैं योजना

पायनियर एकेडमिक्स द्वारा हाल ही में किए गए सर्वे से पता चलता है कि 91% अंतरराष्ट्रीय छात्र अभी भी अमेरिका में पढ़ाई करने की योजना बना रहे हैं. हालांकि सैलरी, सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता और वैश्विक तनाव जैसी चिंताएं बढ़ी हुई हैं. जुलाई 2025 में F-1 वीजा पर आने वाले छात्रों की संख्या पिछले साल की तुलना में लगभग 30% घट गई, जिसमें भारतीय छात्रों में 50% की गिरावट और चीनी छात्रों में 26% की गिरावट रही. छात्रों की मुख्य चिंताओं को ऐसे समझ सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय तनाव-54%, राजनीतिक अस्थिरता-45%, व्यक्तिगत सुरक्षा-31%…

नए H1B वीजा नियमों ने भी स्थिति को और बना दिया है पेचीदा

नए H1B वीजा नियमों ने भी स्थिति को और पेचीदा बना दिया है. कई छात्रों के लिए अमेरिका की पढ़ाई का असली फायदा पोस्ट-स्टडी नौकरी के अवसरों में है. अगर ये रास्ते सीमित दिखें तो महंगी अमेरिकी पढ़ाई करने का मन कम होता है. इसका असर सिर्फ भारतीय या इंटरनेशनल छात्रों पर ही नहीं बल्कि अमेरिका पर भी पड़ेगा, जिसमें अमेरिकी यूनिवर्सिटी करोड़ों रुपये की ट्यूशन फीस खो सकती हैं. घरेलू छात्रों पर असर पड़ सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय छात्रों की फीस अक्सर रिसर्च और एकेडमिक्स प्रोग्राम्स में इस्तेमाल होती है.

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