New Delhi: बांग्लादेश के पाकिस्तान से बढते नजदीकियों और भारत से बन रहे टकराव के बीच रूस ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. बांग्लादेश में रूस के राजदूत अलेक्जेंडर ने कहा है कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता किसी एक देश की देन नहीं थी. भारत और रूस दोनों ने भारी बलिदान दिए. ऐसे में इतिहास को नज़रअंदाज़ करना भविष्य के रिश्तों के लिए खतरनाक हो सकता है.
दक्षिण एशिया में संतुलन और स्थिरता चाहता है मॉस्को
मॉस्को का संकेत साफ माना जा रहा है कि वह दक्षिण एशिया में तनाव नहीं, संतुलन और स्थिरता चाहता है. रूस के राजदूत अलेक्जेंडर ने ढाका को 1971 के ऐतिहासिक युद्ध की याद दिलाते हुए भारत के साथ बढ़ते तनाव पर सख्त टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश को जल्द से जल्द भारत के साथ रिश्तों में तनाव कम करना चाहिए. यह नहीं भूलना चाहिए कि उसकी आज़ादी में भारत और तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) की निर्णायक भूमिका रही है.
बांग्लादेश के पक्ष में मजबूती से खड़ा रहा भारत
रूसी राजदूत ने साफ शब्दों में कहा कि 1971 में भारत ने न सिर्फ सैन्य स्तर पर अहम योगदान दिया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी बांग्लादेश के पक्ष में मजबूती से खड़ा रहा. वहीं सोवियत संघ ने उस दौर में भारत-बांग्लादेश को कूटनीतिक और रणनीतिक समर्थन देकर पश्चिमी दबावों को संतुलित किया था. राजदूत अलेक्जेंडर के मुताबिक बांग्लादेश की स्वतंत्रता किसी एक देश की देन नहीं थी. भारत और रूस दोनों ने भारी बलिदान दिए. ऐसे में इतिहास को नज़रअंदाज़ करना भविष्य के रिश्तों के लिए खतरनाक हो सकता है.
भू-राजनीतिक समीकरणों को लेकर चर्चाएं तेज़
अलेक्जेंडर की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब भारत-बांग्लादेश संबंधों में खटास, आंतरिक अस्थिरता और क्षेत्रीय भू-राजनीतिक समीकरणों को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं. विश्लेषकों का कहना है कि रूस का यह बयान सिर्फ सलाह नहीं बल्कि ढाका के लिए एक कूटनीतिक चेतावनी भी है कि इतिहास से मुंह मोड़ना उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग.थलग कर सकता है.
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