भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई (CJI BR Gavai) शनिवार को नागपुर जिला वकील संघ (Nagpur District Lawyers Association) द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में शामिल होने नागपुर पहुंचे. इस अवसर पर उन्होंने अपने जीवन के भावनात्मक पहलुओं को साझा करते हुए अपने दिवंगत पिता को याद किया और न्यायपालिका की भूमिका पर अपने विचार भी रखे. सीजेआई गवई कार्यक्रम के दौरान भावुक हो गए और कहा, “मेरे पिता को हमेशा विश्वास था कि मैं एक दिन सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनूंगा. आज वह सपना साकार हुआ है, लेकिन अफसोस है कि वह इसे देखने के लिए आज हमारे बीच नहीं हैं.”
उन्होंने बताया कि उनके पिता का निधन वर्ष 2015 में हो गया था. उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें संतोष है कि उनकी मां इस ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनीं. सीजेआई बी.आर. गवई ने इस समारोह में मराठी भाषा में अपना भाषण दिया. उन्होंने अपने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दिए गए एक पूर्व भाषण का ज़िक्र करते हुए कहा, “मैंने वहां कहा था कि न्यायिक सक्रियता स्थायी रहनी चाहिए, क्योंकि यह संविधान की रक्षा और नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है.”
उन्होंने संविधान की संरचना और तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की सीमाओं पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, “कानून बनाना विधायिका का कार्य है, चाहे वह संसद हो या राज्य की विधानसभाएं. कार्यपालिका से अपेक्षा की जाती है कि वह संविधान और कानून के अनुरूप कार्य करे. न्यायपालिका तब हस्तक्षेप कर सकती है जब कोई कानून संविधान की सीमाओं का उल्लंघन करता हो.” हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायपालिका को हर विषय में दखल देने से बचना चाहिए. उन्होंने कहा, “मैं हमेशा कहता हूं कि न्यायिक सक्रियता आवश्यक है, लेकिन इसे न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंक में बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.”