Russia-India Relation: भारत मौजूदा समय में वैश्विक राजनीति और सुरक्षा की जटिल गुत्थी में खुद को सही संतुलन बनाने के प्रयासो में जुटा हुआ है. ऐसे में ही उसने पिछले कई वर्षो में रूस से कई रक्षा आकड़ों का चयन किया, लेकिन अब वो विकल्पों की विस्तार की ओर देख रहा है, जिससे एक पक्ष पर निर्भरता कम की जा सके. और हाल ही में भारतीय नौसेना का अंतिम रूसी निर्मित युद्धपोत INS तमाल अंत होना, इस बदलाव की निशानी है.
दरअसल, INS तमाल 1 जुलाई 2025 को पश्चिमी कमान का हिस्सा बना और अब सारा ध्यान इसके बाद बनाए जाने वाले जहाजों पर होगा, जो भारत के शिपयार्ड में ही तैयार होंगे. भारत के इस कदम ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत का स्वदेशी उत्पादन और आत्मनिर्भरता (Atmanirbharta) अब केवल नारा नहीं, बल्कि रणनीतिक प्राथमिकता बन चुकी है.
रूस से अब भारत की कोई नई बड़ी सैन्य खरीददारी नहीं
बता दें कि INS तमाल एक ओर जहां एडमिरल ग्रिगोरोविच श्रेणी का आधुनिक फ्रिगेट है और अरब सागर तथा हिंद महासागर की रक्षा में योगदान देगा, वहीं यह रक्षा रणनीति की बदली तस्वीर को दिखाता है. दरअसल, S‑400 मिसाइल रक्षा प्रणाली के अगले दो बैच आने के बाद भी रूस से अब भारत की कोई नई बड़ी सैन्य खरीददारी नहीं होगी, क्योंकि ये सौदे युद्ध शुरू होने से पहले ही हो चुके थे.
भारत अपनी पांचवी पीढ़ी के लडाकू विमान पर दे रहा जोर
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत आने से पहले ही, रूस ने SU‑57 फाइटर जेट, S‑500 एयर डिफेंस सिस्टम और परमाणु पनडुब्बियों की पेशकश की, लेकिन भारत ने उसे अस्वीकार कर दिया. इसके अलावा, रूस के साथ मिलकर हेलीकॉप्टर बनाने का प्रोजेक्ट भारत द्वारा पहले ही रद्द कर दिया था और परमाणु पनडुब्बी पट्टे पर लेने का रूसी ऑफर भी ठंडे बस्ते में रहा. इसके बदले भारत अपनी पांचवीं पीढ़ी की लड़ाकू विमान परियोजना AMCA पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो पूरी तरह देश के वैज्ञानिक और तकनीकी सामर्थ्य को दर्शाता है.
क्या रूस के साथ भारत का समझौता खत्म हो जाएगा?
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2009 में रूस का हिस्सा भारत की कुल रक्षा आयात का 76% था, लेकिन यह आंकड़ा 2024 तक घटकर केवल 36% रह गया. वहीं, अमेरिकी और फ्रांसीसी कंपनियों के साथ भारत लगभग 20 अरब डॉलर का रक्षा सौदे कर चुका है, जो यह संकेत देता है कि वैश्विक साझेदारी को मजबूती से अपनाया जा रहा है.
भारत-रूस व्यापार को लेकर अमेरिका की बढ़ी टेंशन
हालांकि ऊर्जा क्षेत्र में भारत-रूस का रिश्ता अब भी गहरा है. दरअसल भारत मई 2025 में रूस से ऊर्जा खरीदने में दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया, जिसमें लगभग 72% कच्चे तेल का योगदान था. ऐसे में अमेरिका की चिंता बढ़ी हुई है. ऐसे में अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने अमेरिका में एक ऐसा प्रस्ताव लाने का जिक्र किया है, जिसमें रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर भारी टैरिफ का प्रावधान होगा, जिसमें भारत भी शामिल है.
एक जनरेशन से अधिक पुराने युग का अंत
वहीं, जानकारों का कहना है कि भविष्य में रक्षा क्षेत्र में रूस के साथ भारत का समझौता पुराने हथियारों के रखरखाव, पुर्जों की आपूर्ति और मरम्मत तक सीमित रह सकता है. क्योंकि आने वाले समय में नए युद्धपोत, लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर और मिसाइल सिस्टम अमेरिका, फ्रांस और स्वदेशी संसाधनों से ही निर्मित होंगे. उनका कहना है कि यह एक जनरेशन से अधिक पुराने युग का अंत है, जिसमें रूस ही भारत का एकमात्र बड़े स्तर का सैन्य साझेदार रहा करता था.
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