भारत में एनर्जी उत्पादन में रिन्यूएबल एनर्जी की हिस्सेदारी बढ़कर वित्त वर्ष 2030 तक 35 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है. यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2025 में 22.1 प्रतिशत था. यह जानकारी गुरुवार को जारी एक रिपोर्ट में दी गई. रिपोर्ट में बताया गया कि वित्त वर्ष 2025 से 2030 के बीच रिन्यूएबल एनर्जी की क्षमता में लगभग 200 गीगावाट की वृद्धि होने की संभावना है. रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने कहा कि यह बदलाव कई कारकों पर निर्भर करेगा, जिनमें मौजूदा प्रोजेक्ट्स का समय पर क्रियान्वयन, उनके पावर परचेज एग्रीमेंट (PPA) की उपलब्धता और नए रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट के लिए समय पर टेंडर जारी होना शामिल हैं.
रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र का दृष्टिकोण स्थिर
आईसीआरए के मुताबिक, मजबूत नीतिगत समर्थन, बेहतर टैरिफ प्रतिस्पर्धात्मकता और बड़े वाणिज्यिक और औद्योगिक (सी एंड आई) ग्राहकों द्वारा स्थिरता संबंधी पहलों के कारण रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र का दृष्टिकोण स्थिर बना हुआ है. हालांकि, क्रियान्वयन के मोर्चे पर चुनौतियां बनी हुई हैं, जिनमें जमीन और ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर, पीपीए पर हस्ताक्षर करने में देरी, उपकरणों की कीमतों और डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी फाइनेंस शामिल हैं. रिपोर्ट में चैनल चेक के माध्यम से बताया गया कि वित्त वर्ष 24 में 47.3 गीगावाट रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता के कॉन्ट्रैक्ट दिए गए थे.
नए प्रोजेक्ट ट्रेंड में गिरावट
वहीं, वित्त वर्ष 2025 में यह आंकड़ा घटकर 40.6 गीगावाट हो गया था. चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में केवल 5.8 गीगावाट के कॉन्ट्रैक्ट दिए गए हैं. इसके अतिरिक्त, लगभग 40-45 गीगावाट क्षमता के पीपीए अभी साइन नहीं हुए हैं. आईसीआरए के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गिरीश कुमार कदम ने कहा कि नए प्रोजेक्ट ट्रेंड में गिरावट और केंद्रीय नोडल एजेंसियों द्वारा बड़ी रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता के लिए पीपीए पर हस्ताक्षर में देरी, रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र के लिए उपलब्ध ट्रांसमिशन कनेक्टिविटी के एग्जीक्यूशन पर चिंताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाती है.
उन्होंने कहा कि राज्य के भीतर और अंतर-राज्य स्तर पर समयबद्ध तरीके से भंडारण क्षमता और ग्रिड सुदृढ़ीकरण दोनों को बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एनर्जी मिक्स में रिन्यूएबल एनर्जी का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है.

