पिछले आठ महीनों में भारी निकासी के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने मई 2025 में भारतीय शेयर बाजारों में दमदार वापसी की है. यह प्रवाह सितंबर 2024 के बाद से सबसे ऊंचे स्तर पर रहा. विशेषज्ञों के अनुसार, भारत-पाक के बीच तनाव में कमी, अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता की संभावना, कमजोर डॉलर और बेहतर तिमाही नतीजों के चलते विदेशी निवेशकों का भरोसा दोबारा बढ़ा है.
नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के मुताबिक, मई में FPI ने भारतीय शेयरों में कुल 19,860 करोड़ रुपये का निवेश किया. यह ट्रेंड अप्रैल से ही दिखना शुरू हो गया था, जब FPI ने करीब 4,223 करोड़ रुपये की इक्विटी खरीदी थी. जनवरी से मार्च 2025 के बीच हालांकि, FPI ने लगातार बिकवाली की थी. जनवरी में सबसे अधिक 78,027 करोड़ रुपये की निकासी हुई थी.
Date Market में भी निवेश जारी
मई में FPI ने डेट (Date Market) बाजार में भी 12,155 करोड़ रुपये डाले. मार्च 2025 में यह आंकड़ा 29,044 करोड़ रुपये रहा था. इस तरह मई में इक्विटी और डेट में कुल मिलाकर 30,950 करोड़ रुपये का एफपीआई प्रवाह हुआ. हालांकि मई के निवेश के बावजूद, 2025 में अब तक कुल 92,491 करोड़ रुपये की FPI निकासी हो चुकी है. अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 के बीच FPI ने करीब 2.16 लाख करोड़ रुपये भारतीय बाजार से निकाले थे. एक प्रमुख रिसर्च फर्म का कहना है कि डॉलर की कमजोरी, अमेरिका और चीन में आर्थिक सुस्ती, भारत की तेज GDP ग्रोथ और घटती महंगाई तथा ब्याज दरें एफपीआई के लिए भारत को आकर्षक बना रही हैं. वि
त्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में भारत की GDP ग्रोथ 7.4% रही है, जो उम्मीद से बेहतर है. हालांकि, मई में कुछ दिनों पर एफपीआई ने भारी बिकवाली भी की. 21 मई को एक ही दिन में उन्होंने 10,000 करोड़ रुपये के शेयर बेच डाले. इसका कारण था भारत-पाक तनाव में अस्थिरता और अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में अचानक उछाल. एनएसई के अनुसार, मार्च 2025 में एफपीआई का कुल स्वामित्व 17.5 प्रतिशत तक पहुंच गया. यह पिछली तिमाही की तुलना में 12 आधार अंक की बढ़त है. यह बढ़त खासकर प्राइवेट बैंकों में आई, जहां फपीआई की हिस्सेदारी अधिक रहती है.
वित्तीय क्षेत्र को छोड़ दें, तो बाकी सभी क्षेत्रों में एफपीआई की हिस्सेदारी गिरकर 15% पर आ गई है, जो पिछले 13 वर्षों का सबसे निचला स्तर है. निफ्टी 50 में एफपीआई की हिस्सेदारी स्थिर रही, जबकि निफ्टी 500 में यह 28 बीपीएस गिरकर 18.5% हो गई. एंजेल वन लिमिटेड के वरिष्ठ विश्लेषक वकार जावेद खान का कहना है कि निकट भविष्य में भूराजनीतिक जोखिम एफपीआई निवेश को प्रभावित कर सकते हैं. लेकिन भारत की दीर्घकालिक ग्रोथ स्टोरी बरकरार है.
उनका मानना है कि भारत की कॉर्पोरेट आय अगले 3-5 साल में 14-17% सालाना की दर से बढ़ सकती है. जब भी बाजार में वैल्यूएशन आकर्षक होंगे, एफपीआई प्रवाह तेजी से लौटेगा. मई में एफपीआई प्रवाह सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा. भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया, ताइवान और वियतनाम जैसे देशों में भी सकारात्मक निवेश देखा गया. केवल थाईलैंड इससे अछूता रहा.