घरेलू इक्विटी बाजार से बाहर निवेश के अवसर तलाशने वाले भारतीय निवेशकों ने पिछले एक साल में उल्लेखनीय रिटर्न अर्जित किए हैं. इस अवधि में कई अंतरराष्ट्रीय म्यूचुअल फंड्स और फंड-ऑफ-फंड्स ने 72% तक का शानदार रिटर्न दिया है. वैश्विक स्तर पर टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, उपभोक्ता खर्च और कमोडिटी बाजारों में आई तेजी ने इन फंड्स को मजबूती प्रदान की, जिससे उन्होंने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली भारतीय इक्विटी कैटेगरी को भी पीछे छोड़ दिया.
शीर्ष 10 अंतर्राष्ट्रीय फंड्स ने 33% से लेकर 72% तक का दिया रिटर्न
एसीई म्यूचुअल फंड के 20 अक्टूबर तक के आंकड़ों के अनुसार, शीर्ष 10 अंतर्राष्ट्रीय फंड्स ने पिछले एक वर्ष में 33% से लेकर 72% तक का रिटर्न दिया है. इसकी तुलना में, इसी अवधि के दौरान बेंचमार्क निफ्टी केवल 5.7% बढ़ा. मिराए एसेट एनवाईएसई फैंग प्लस ईटीएफ एफओएफ 71.78% के शानदार एक साल के रिटर्न और 62.72% के तीन साल के रिटर्न के साथ लिस्ट में टॉप पर रहा. इसके बाद, इन्वेस्को ग्लोबल कंज्यूमर ट्रेंड्स एफओएफ रहा, जो ग्लोबल कंज्यूमर ब्रांड और डिजिटल कॉमर्स कंपनियों के मजबूत प्रदर्शन का लाभ उठाते हुए 52.65% बढ़ा.
अमेरिका-केंद्रित व्यापक रणनीतियों ने भी महत्वपूर्ण लाभ किया दर्ज
अमेरिका-केंद्रित व्यापक रणनीतियों ने भी महत्वपूर्ण लाभ दर्ज किया. मिराए एसेट एसएंडपी 500 टॉप 50 ईटीएफ एफओएफ ने 49.91% रिटर्न दिया, जबकि मोतीलाल ओसवाल नैस्डैक 100 एफओएफ ने एक वर्ष में 42.48% रिटर्न दिया. डीएसपी वर्ल्ड माइनिंग ओवरसीज इक्विटी एफओएफ ने इस वर्ष 32.83% की उल्लेखनीय बढ़त दर्ज की है. यह वृद्धि मुख्य रूप से वैश्विक कमोडिटी कीमतों में मजबूती और प्रमुख खनन कंपनियों द्वारा अपनाए गए बेहतर पूंजी अनुशासन के कारण रही.
कुल मिलाकर, इस वर्ष वैश्विक विविधीकरण (ग्लोबल डायवर्सिफिकेशन) भारतीय निवेशकों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ है. अंतर्राष्ट्रीय बाजारों खासकर एआई, टेक्नोलॉजी और प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े क्षेत्रों ने घरेलू इक्विटी की तुलना में कहीं अधिक मजबूत और स्थिर रिटर्न प्रदान किया है. इस बीच, पिछले दो सत्रों में भारी गिरावट के बाद, सोमवार के रिकॉर्ड उच्च स्तर से निवेशकों द्वारा मुनाफावसूली के कारण सोने और चांदी की कीमतें क्रमशः 4,050 और 48 डॉलर प्रति औंस के आसपास स्थिर हो गईं.
विशेषज्ञों ने कहा, यह गिरावट अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों को लेकर आशावाद के बीच जोखिम वाली संपत्तियों की ओर रुझान को दर्शाती है, जिससे सोने की सुरक्षित निवेश मांग कमजोर हुई है. भारत में मौसमी मांग में भी कमी आई है, जिससे फिजिकल मार्केट पर दबाव बढ़ा है.