नवंबर में सस्ती हुई घर पर पकाई जाने वाली शाकाहारी-मांसाहारी थाली, लागत में 13% की गिरावट

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

इस वर्ष नवंबर में सब्जियों और दालों की कीमतों में गिरावट के कारण घर पर पकाई जाने वाली शाकाहारी और मांसाहारी भोजन की लागत में सालाना आधार पर 13% की कमी देखी गई. क्रिसिल इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के अनुसार, आपूर्ति में वृद्धि के चलते टमाटर की कीमतों में सालाना 17% की गिरावट आई, जबकि उच्च आधार के कारण आलू की कीमत 29% घट गई. वहीं, पिछले रबी सीजन के स्टॉक में वृद्धि और निर्यात में कमी के कारण प्याज की कीमतों में 53% तक का बड़ा उछाल दर्ज हुआ.

शाकाहारी थाली की लागत में मासिक आधार पर हुई 2% की वृद्धि

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टॉक में वृद्धि और बंगाल चना, पीली मटर तथा काले चने के भारी आयात के कारण दालों की कीमत में 17% की गिरावट आई. हालांकि, शाकाहारी थाली की लागत में मासिक आधार पर 2% की वृद्धि हुई, जबकि नवंबर में मांसाहारी थाली की लागत में 1% की गिरावट दर्ज की गई. क्रिसिल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर पुशन शर्मा ने कहा, मीडियम टर्म में खरीफ की कटाई में देरी और कम पैदावार के कारण प्याज की कीमतें बढ़ने का अनुमान है. हालांकि, आलू की कीमतों में गिरावट देखी जा सकती है क्योंकि कोल्ड स्टोरेज स्टॉक बाजार में आ रहा है.

भविष्य में दालों की कीमतें सीमित दायरे में रहेंगी

शर्मा ने आगे कहा, फर्म ने अनुमान लगाया है कि पीली मटर पर 30% आयात शुल्क के कारण निकट भविष्य में दालों की कीमतें सीमित दायरे में रहेंगी. इसके अलावा, काले चने का अप्रतिबंधित आयात, दालों की कीमतों को भी सीमित रखेगा. उन्होंने आगे कहा, आयात शुल्क बढ़ने जैसे किसी भी नीतिगत हस्तक्षेप से दालों की कीमतों पर अधिक दबाव पड़ सकता है. फेस्टिव सीजन में उच्च मांग के कारण वेजिटेबल ऑयल की कीमतों में सालाना आधार पर 6% की वृद्धि दर्ज की गई.

सालाना आधार पर 6% की बढ़ोतरी

इसके अतिरिक्त, एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत में सालाना आधार पर 6% की बढ़ोतरी ने समग्र थाली की लागत में गिरावट को सीमित कर दिया. दूसरी ओर, मांसाहारी थाली की लागत में कमी का मुख्य कारण ब्रॉयलर की कीमतों में गिरावट थी. ब्रॉयलर की कीमत में सालाना आधार पर 12% की गिरावट दर्ज की गई, जो मांसाहारी थाली की कुल लागत का लगभग 50% हिस्सा है. घर पर थाली तैयार करने की औसत लागत उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम भारत में प्रचलित इनपुट कीमतों के आधार पर गणना की जाती है, जो मासिक कीमतों में बदलाव का आम आदमी के खर्च पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाती है.

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