भारत में पेट्रोकेमिकल उत्पादों की खपत आने वाले कुछ वर्षों में हर साल 6-7% की दर से बढ़ने की उम्मीद है. यह वृद्धि देश की आर्थिक प्रगति और पेट्रोकेमिकल से बने उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण होगी. केयरएज रेटिंग्स की सोमवार को जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. इस स्थिति को देखते हुए, आयात पर निर्भरता कम करना भारत की बड़ी प्राथमिकताओं में शामिल है. इसी वजह से सरकारी और निजी दोनों कंपनियां अपनी पेट्रोकेमिकल उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना बना रही हैं.
भारत में बढ़ेगा पॉलीप्रोपाइलीन उत्पादन
रिपोर्ट के अनुसार, FY25 से 2030 के बीच पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी) की उत्पादन क्षमता 1.8 गुना बढ़ने की उम्मीद है, जबकि इसकी मांग 1.4 गुना बढ़ने का अनुमान है. इससे 2030 तक भारत की आयात पर निर्भरता काफी हद तक कम हो सकती है. केयरएज रेटिंग्स के एसोसिएट डायरेक्टर रबिन बिहानी ने कहा कि घरेलू कंपनियों के लिए सबसे जरूरी बात लागत को कम करना है, ताकि उन्हें अपने निवेश पर अच्छा मुनाफा मिल सके. रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में ज्यादा उत्पादन होने के चलते फिलहाल पेट्रोकेमिकल उत्पादों की कीमतें कमजोर बनी रह सकती हैं.
चीन के सस्ते उत्पादन से नुकसान
हालांकि, FY26 की पहली छमाही में इसमें थोड़ी सुधार देखने को मिली है, जिससे कंपनियों के मुनाफे में करीब 2% तक की बढ़ोतरी हो सकती है. केयरएज रेटिंग्स के डायरेक्टर हार्दिक शाह ने कहा कि लंबे समय तक अच्छा मुनाफा तभी संभव है, जब लागत कम हो, वैश्विक मांग और आपूर्ति संतुलित हो और जरूरत पड़ने पर सरकार का सहयोग मिले. खासकर चीन द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन किए जाने के कारण भारतीय कंपनियों को लंबे समय से नुकसान उठाना पड़ा है.
भारत में पॉलीमर खपत में तेजी
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पिछले कुछ वर्षों में पॉलीमर जैसे पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी), हाई डेंसिटी पॉलीएथिलीन, लो डेंसिटी पॉलीएथिलीन (एलडीपीई), लीनियर लो डेंसिटी पॉलीएथिलीन, पॉलीविनाइल क्लोराइड, एरोमैटिक्स और इलास्टोमर जैसे पेट्रोकेमिकल उत्पादों की खपत तेजी से बढ़ी है और आने वाले वर्षों में भी बढ़ने की उम्मीद है. इस दौरान देश में उत्पादन क्षमता पर्याप्त रूप से बढ़ नहीं पाई, जिससे घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात पर अधिक निर्भर रहना पड़ा.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में दुनियाभर में पेट्रोकेमिकल उत्पादन काफी बढ़ा है, खासकर चीन में. लेकिन, मांग उस रफ्तार से नहीं बढ़ी, जिससे मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा हुआ. इसका असर भारतीय कंपनियों के मुनाफे पर पड़ा, क्योंकि उन्हें सस्ते चीनी उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी.