मालेगांव ब्लास्ट मामल: योगी आदित्यनाथ को भी फंसाने का था दबाव, गवाह ने किया बड़ा खुलासा

Ved Prakash Sharma
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Malegaon Blast Case: मुंबई की एक विशेष अदालत ने गुरुवार को मालेगांव ब्लास्ट मामले में फैसला सुनाया था. कोर्ट ने इस मामले में प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया था. कोर्ट के इस फैसले पर विपक्ष के कई नेताओं ने आपत्ति जताई है. इस बीच एक ऐसा खुलासा हुआ है, जो सभी को चौंका रहा है.

दरअसल, इस मामले में कुल 39 गवाहों में से एक गवाह ने ऐसा खुलासा किया है, जो चौंकाने वाला है. इन गवाहों में से एक गवाह ने बताया कि उसपर योगी आदित्यनाथ और आरएसएस तथा दक्षिणपंथी संगठनों के अन्य कई लोगों को फंसाने का भी दबाव डाला बनाया गया था.

योगी आदित्यनाथ को फंसाने थी साजिश

बता दें कि मालेगांव ब्लास्ट केस में सरकारी गवाह रहे मिलिंद जोशी ने कोर्ट में बताया कि उनपर योगी आदित्यनाथ और RSS का नाम लेने का दबाव बनाया गया था. इसके लिए उनको कई दिनों तक हिरासत में रखा गया था.

मालूम हो कि उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ उस समय भी हिदुत्व का फायरब्रांड चेहरा थे. गवाह के अनुसार, मालेगांव ब्लास्ट केस में योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत को फंसाने की कोशिश की जा रही थी. वहीं, इस मामले की जांच अधिकारी रहे महबूब मुजावर ने कहा कि केस को इस तरीके से प्रस्तुत किया गया, जिससे भगवा आतंकवाद का नैरेटिव स्थापित किया जा सके.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, महबूब मुजावर ने कहा कि तत्कालीन सरकार का उद्देश्य हिंदुत्व की राजनीति को खत्म करना था. इस मामले में सरकारी गवाह मिलिंद जोशी पर दबाव था कि वह असीमानंद और योगी आदित्यनाथ का नाम इस मामले में लें. इसके लिए जांच अधिकारियों ने उन्हें प्रताड़ित भी किया था.

सिर्फ कहानियों के आधार पर सोच बना लेना सही नही: कोर्ट

मालूम हो कि गुरुवार को मालेगांव ब्लास्ट मामले में मुंबई की एक विशेष अदालत ने अपना फैसला दिया था. कोर्ट ने इस मामले में सभी सात आरोपियों बरी कर दिया. मालेगांव ब्लास्ट मामले में बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहगिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर धर द्विवेदी आरोपी थे. सभी को कोर्ट ने बरी कर दिया था.

न्यायालय ने फैसले के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है और कोई भी धर्म हिंसा को सही नहीं ठहराता है. कोर्ट ने कहा कि मामले में कोई भी पुख्ता सबूत रखने में जांच एजेंसियां सफल नहीं हो सकी हैं. सिर्फ कहानियों के आधार पर सोच बना लेना सही नहीं है.

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