CJI B R Gavai का नेपाल में गर्मजोशी से स्वागत, भगवान बुद्ध की पवित्र जन्मस्थली लुम्बिनी के किए दर्शन

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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CJI BR Gavai Nepal Visit: भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई नेपाल के दौरे पर हैं. जस्टिस बी. आर. गवई और उनके परिवार का लुम्बिनी में तुलसीपुर हाईकोर्ट (बुटवल पीठ) के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बासुदेव आचार्य द्वारा हार्दिक स्वागत किया गया. खेंपो चिमेद लखयाल लामा ने भी जस्टिस गवई का स्वागत किया. इस अवसर पर रूपन्देही (Rupandehi) जिला न्यायालय के न्यायाधीश और अन्य गणमान्य शख्सियतें भी उपस्थित थीं.
नेपाल में चीफ जस्टिस बी. आर. गवई और उनके परिवार को भगवान बुद्ध की पवित्र जन्मस्थली लुम्बिनी ले जाया गया और क्षेत्र के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व के विभिन्न अन्य स्थलों का दर्शन कराया गया. चीफ जस्टिस ने इस अवसर पर अपने गर्मजोशी से किए गए स्वागत के लिए उनका आभार व्यक्त किया.

नेपाल–भारत न्यायिक संवाद 2025 में भागीदारी

उन्होंने इससे पहले राजधानी काठमांडू में आयोजित नेपाल–भारत न्यायिक संवाद 2025 में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि ‘आज के वैश्विक दौर में दुनिया की न्यायपालिकाएं पहले से कहीं अधिक आपस में जुड़ी हुई हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि वे एक-दूसरे के अनुभवों से सीखें और न्याय व्यवस्था को समयानुकूल बनाएं.’

India-Nepal Judicial Dialogue 2025

CJI गवई ने कहा कि न्यायपालिका अब सिर्फ विवाद सुलझाने वाला मंच नहीं रह गई है, बल्कि यह संवैधानिक मूल्यों की संरक्षक और लोकतांत्रिक सुधारों की प्रेरक शक्ति बन चुकी है. उन्होंने कहा- ‘आज की दुनिया में ज्ञान और अनुभवों का आदान–प्रदान आधुनिक न्यायिक तंत्र की मजबूती और प्रभावशीलता के लिए अपरिहार्य हो गया है. इसी कारण इस संवाद का विशेष महत्व है.’
अपने संबोधन में CJI गवई ने इस बात पर जोर दिया कि अदालतें अब केवल कानून की व्याख्या करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे शासन-व्यवस्था के विकास का मार्गदर्शन करती हैं और जनता के विश्वास को मजबूत बनाती हैं. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र सिर्फ संस्थाओं से नहीं, बल्कि उन मूल्यों से जीवित रहता है जिन्हें संस्थाएं आत्मसात करती हैं और आगे बढ़ाती हैं.

भारत–नेपाल न्यायिक सहयोग की नई दिशा

CJI गवई ने भारतीय न्यायशास्त्र की यात्रा को रेखांकित करते हुए 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती बनाम भारत संघ मामले का उल्लेख किया, जिसमें ‘बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन’ (मौलिक संरचना सिद्धांत) प्रतिपादित हुआ था. उन्होंने बताया कि यह सिद्धांत आगे चलकर एम. नागराज (2006) और NJAC मामला (2015) जैसे कई फैसलों में दोहराया गया और अब यह भारतीय संविधान की रीढ़ बन चुका है. इतना ही नहीं, यह सिद्धांत भारत से बाहर भी कई अदालतों को प्रभावित कर चुका है.
आगे उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल विशेषता है, जिसे किसी भी हाल में कमजोर नहीं किया जा सकता. उन्होंने यह भी बताया कि शिक्षा, निजता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, प्रजनन के अधिकार और गरिमा को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्रता के मूल हिस्से के रूप में मान्यता दी है. बराबरी के अधिकार पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा औपचारिक समानता से आगे बढ़कर वास्तविक समानता को बढ़ावा देने की कोशिश की है.
हाल ही में एक संविधान पीठ के फैसले का जिक्र करते हुए गवई ने कहा कि कोर्ट ने अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण को मान्य किया, ताकि आरक्षण का लाभ सबसे पिछड़े तबकों तक पहुंचे. उन्होंने कहा- ‘मैंने अपने फैसले में कहा था कि सकारात्मक कार्रवाई की अवधारणा लगातार विकसित होनी चाहिए, ताकि इसके फायदे उन वर्गों तक भी पहुँचें जो ऐतिहासिक रूप से अब तक वंचित रहे हैं.’

CJI BR Gavai Nepal Visit

चुनावी पारदर्शिता पर दिया जोर

गवई ने चुनावी पारदर्शिता को भारतीय लोकतंत्र की नींव बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कई अहम फैसले दिए हैं. 2002 में ADR केस के जरिए मतदाताओं को प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि जानने का अधिकार दिया गया. वहीं, 2024 में कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक ठहराकर साफ संदेश दिया कि लोकतंत्र में पारदर्शिता और ईमानदारी सर्वोपरि है.
CJI गवई ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की भी प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि नेपाल की सर्वोच्च अदालत ने लैंगिक न्याय, निजता, पर्यावरण संरक्षण और आदिवासी अधिकारों जैसे मुद्दों पर प्रगतिशील रुख अपनाया है. उन्होंने नेपाल के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश मान सिंह राउत और वहां की न्यायिक बिरादरी का आभार जताते हुए कहा कि ऐसे संवाद दोनों देशों की न्यायपालिका को और मजबूत बनाते हैं और क्षेत्रीय सहयोग को नई दिशा देते हैं.
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