Independence Day 2025: 15 अगस्त को पिन कोड से आई भारतीय डाक व्यवस्था में क्रांति, जानिए कैसे बदल गई चिट्ठियों की दुनिया

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Independence Day 2025: 15 अगस्त 1972 को जहां एक तरफ तिरंगे ने आसमान में अपनी शान बिखेरी, वहीं, दूसरी तरफ भारतीय डाक व्यवस्था (Indian Postal System) में भी एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ. पोस्टल इंडेक्स नंबर, यानी पिन कोड (Pin Code). 70 के दशक में चिट्ठियां हमारे जीवन का अहम हिस्सा थीं, लेकिन कई बार सही पते पर इनका पहुंचना एक चुनौती बन जाता था, खासकर जब शहरों और गांवों के नाम एक जैसे होते थे. इन उलझनों से निजात पाने के लिए एक सटीक कोडिंग सिस्टम की आवश्यकता महसूस हुई और इसी आवश्यकता से पिन कोड का जन्म हुआ.
इस क्रांतिकारी पहल के पीछे थे श्रीराम भीकाजी वेलंकर, जो उस समय के केंद्रीय संचार मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और डाक एवं तार बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य थे। श्रीराम वेलंकर को ‘फादर ऑफ द पोस्टल इंडेक्स कोड सिस्टम’ के रूप में जाना जाता है. वेलंकर ने भारतीय डाक व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक सरल लेकिन प्रभावी तरीका सुझाया, जो बाद में देश भर में लागू हुआ। उन्होंने डाक सेवा में जटिलताओं को कम करने के लिए पिन कोड (Pin Code) प्रणाली को विकसित किया. इसके तहत देश को विभिन्न जोन में बांटा गया, और हर जोन को पहचाने जाने के लिए पहले दो अंकों का प्रयोग किया गया. पिन कोड के पहले दो अंक उस जोन को दर्शाते हैं, तीसरा अंक उप-क्षेत्र को और आखिरी तीन अंक विशेष डाकघर की पहचान बताते हैं. इस छह अंकों का कोड, जो पहले एक जटिल प्रक्रिया को सरल बनाता था, आज भी भारत में किसी भी चिट्ठी या पार्सल को सही स्थान पर पहुंचाने का सबसे विश्वसनीय और प्रभावी तरीका बन चुका है.

कौन थे इस पहल के जनक?

इस क्रांतिकारी पहल के पीछे थे श्रीराम भीकाजी वेलंकर, जो उस समय के केंद्रीय संचार मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और डाक एवं तार बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य थे. उन्हें ‘पोस्टल इंडेक्स कोड सिस्टम के जनक’ के रूप में सम्मानित किया जाता है. वेलंकर ने भारतीय डाक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए एक सरल और प्रभावी तरीका सुझाया, जिसके तहत पूरे देश को जोन में विभाजित किया गया. हर जोन को पहचानने के लिए पहले दो अंकों का इस्तेमाल किया गया. पिन कोड के पहले दो अंक जोन को दर्शाते हैं, तीसरा अंक उप-क्षेत्र को और आखिरी तीन अंक विशेष डाकघर की पहचान बताते हैं. इस छह अंकों का कोड, जिसने चिट्ठियों और पार्सलों को सही पते पर पहुंचाने में आसानी और भरोसा सुनिश्चित किया, आज भी भारतीय डाक प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है.
मौजूदा समय में जहां चिट्ठियों की जगह व्हाट्सऐप और ईमेल ने ले ली है. वहीं, पिन कोड की अहमियत आज भी कायम है और पहले से कहीं ज्यादा बढ़ चुकी है. आज, हर ऑनलाइन ऑर्डर से लेकर कूरियर और डिलीवरी सेवाओं तक, पिन कोड एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है. अमेज़न, फ्लिपकार्ट, और अन्य ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर किए गए हर ऑर्डर की शुरुआत पिन कोड से ही होती है. बिना पिन कोड के आपका पार्सल गलत जगह पहुंच सकता है. इसके अलावा, सरकारी योजनाओं और बैंकिंग सेवाओं में भी पिन कोड का सही होना बेहद जरूरी है, ताकि लाभार्थी तक सुविधा समय पर पहुंच सके.
कल्पना कीजिए, 70 के दशक में एक सैनिक को भेजी गई चिट्ठी, जो बिना पिन कोड के किसी और की झोली में चली जाती या फिर कोई शादी का निमंत्रण हफ्तों की देरी से किसी और को मिल जाता. ऐसे में, पिन कोड ने इन सभी समस्याओं का समाधान किया। आज, 53 साल बाद, जब भी कोई पैकेज आपके दरवाजे पर आता है, उसका सफर उसी छोटे से छह अंकों वाले कोड से शुरू होता है, जो 15 अगस्त 1972 को हमारे जीवन में आया था.

पिन कोड सिर्फ एक नंबर नहीं…

पिन कोड केवल एक नंबर नहीं है, बल्कि यह एक विश्वास है, जो यह सुनिश्चित करता है कि आपकी चिट्ठी या सामान सही समय पर और सही जगह पहुंचे. यह हमें उस दौर की याद दिलाता है जब चिट्ठियां दिलों को जोड़ने का एक अहम जरिया थीं. आज के समय में, यह पिन कोड ई-कॉमर्स और सरकारी सेवाओं में भी उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है, जो सुनिश्चित करता है कि हर पार्सल, हर दस्तावेज़ और हर सेवा सही पते तक पहुंचे. जहां 15 अगस्त को हम आजादी का जश्न मनाते हैं, वहीं इस दिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि पिन कोड जैसा एक तोहफा हमें मिला था, जिसने हमारे देश के हर पते को एक अद्वितीय पहचान दी.
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