New CJI: जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई बने देश के 52वें CJI, शपथ लेते ही छुए मां के पैर

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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New CJI: न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई (बी आर गवई) बुधवार को राष्ट्रपति भवन में भारत के 52 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति भवन में आयोजित सादे और गरिमापूर्ण समारोह में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने उनको पद की शपथ दिलाई. इससे पहले जस्टिस संजीव खन्ना रिटायर्ड हुए थे.

सीजेआई पद तक पहुंचने वाले पहले बौद्ध

जस्टिस गवई इस पद पर पहुचने वाले पहले बौद्ध है. साथ ही वे दूसरे ऐसे अनुसूचित जाति के व्यक्ति है, जो इस पद पर पहुचे है. गवई का कार्यकाल 23 नवंबर 2025 को खत्म होगा. गवई से पहले पहले के जी बालाकृष्णन 2007 में मुख्य न्यायाधीश बने थे. जो अनुसूचित जाति वर्ग के थे. वो तीन साल तक इस पद पर रहे.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की स्थापना 1950 में हुई थी. उसके बाद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग से केवल सात जज ही हुए हैं. हाल ही में अनौपचारिक बातचीत के दौरान जस्टिस गवई ने यह साफ किया कि सीजेआई के पद से रिटायर्ड होने के बाद कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे.

यदि दलित समुदाय के नहीं होते तो….

उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि एक बार जब कोई व्यक्ति सीजेआई के पद पर रह चुका होता है, तो उसे आगे कोई और जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए. उन्होंने कहा कि न्यायधीशों को ऊंचे बंद कक्षों में बैठकर काम नहीं करना चाहिए. उन्हें जनता से संवाद बनाए रखना चाहिए जस्टिस गवई ने कहा था कि अगर वह दलित समुदाय से नहीं होते तो आज की तारीख में सुप्रीम कोर्ट में जज नहीं होते.

उन्होंने कहा था कि आरक्षण यानी सकारात्मक कार्रवाई की वजह से ही हाशिए पर रहने वाले समुदाय के लोग भी भारत में शीर्ष सरकारी पदों तक पहुचने में कामयाब हो सके. जस्टिस गवई का राजनीतिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद राहुल गांधी के मामले में किसी पक्ष को कोई आपत्ति नही थी. उन्होंने इस मामले की सुनवाई के बाद राहुल गांधी की सदस्यता बहाल करने का आदेश दिया. इसके अलावे बुल्डोहर की कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर उन्होंने दिशा निर्देश जारी किया.

इन मामलों में सुना चुके है फैसला

इसके अलावे भी उन्होनें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रहते हुए कई फैसले दिए, जिनमें न्यूज क्लिक के संस्थापक संपादक प्रबीर पुरकायस्थ, दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) धन शोधन निवारण अधिनियम जैसे कानूनों में मनमानी गिरफ्तारी पर फैसले दिए है. जस्टिस गवई सात जजों के उस संविधान पीठ में भी शामिल थे, जिसने अनुसूचित जातियों के आरक्षण में आरक्षण देने की वकालत की थी.

2019 में बनें सुप्रीम कोर्ट के न्‍यायाधीश  

जस्टिस गवई ने बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई अमरावती विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री लेने के बाद 25 साल की उम्र में उन्होंने वकालत शुरू की. इस दौरान वो मुंबई और अमरावती की अदालतों में पेश होते रहे. जस्टिस गवई को 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पद्दोन्नत किया गया था. नवंबर 2003 में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और नवंबर 2005 में वे स्थायी न्यायाधीश बन गए. बेंच में पदोन्नत होने से पहले, उन्होंने संवैधानिक कानून और प्रशासनिक कानून में प्रैक्टिश की और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्य किया.

उन्हें अगस्त 1992 में बॉम्बे हाईकोर्ट, नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया जहां उन्होंने जुलाई 1993 तक सेवा की. जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था. जस्टिस गवई अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े है. उनके पिता आर. एम गवई बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल रहे. जस्टिस गवई के पिता.महाराष्ट्र के दिग्गज नेता थे, वे 1964 से लेकर 1994 तक महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे. इस दौरान वो विधान परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विपक्ष के नेता के पद पर रहे. वो 1998 में अमरावती से 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए थे. इसके बाद वो अप्रैल 2000 से अपैल 2006 तक महाराष्ट्र राज्य से राज्यसभा के लिए चुने गए थे.

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