इलाहाबाद हाई कोर्ट के ये न्यायमूर्ति क्यों देते हैं हिंदी में फैसला, अब तक दे चुके हैं 10,500 से अधिक निर्णय

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Prayagraj News: मातृभाषा हिन्दी के प्रति प्रेम आपने देखा होगा, लेकिन ऐसा प्रेम शायद ही आपने देखा हो. अगर हम भारतीय न्याय व्यवस्था की बात करें, तो अंग्रेजी, उर्दू और फारसी भाषा का प्रयोग ज्यादा होता है. हाई कोर्ट की तमाम रुलिंग और जजमेंट अंग्रेजी में दिए जाते हैं. ऐसे में जस्टिस डा. गौतम चौधरी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में हिन्दी में 10,500 से अधिक निर्णय देकर मातृभाषा हिंदी का मान बढ़ाने के साथ ही इतिहास रच दिया है. दरअसल, हमने उच्च न्यायालय इलाहाबाद के न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था, जिसको पाठकों ने खूब पसंद किया. हालांकि, जस्टिस चौधरी की ये राह इतनी आसान नहीं थी. आइए आपको बताते हैं न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की राष्ट्रभाषा हिन्दी में निर्णय देने के पीछे की कहानी.

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आपको बता दें कि न्यायमूर्ति को मातृभाषा हिन्दी में निर्णय देने की प्रेरणा के पीछे उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि है. दरअसल, जस्टिस चौधरी की पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी रही है कि उनके मन में सदैव देश और समाज के गरीब तबके एवं ग्रामीण परिवेश में रहने वाले जन-मानस की सेवा करने की भावना थी. ये भावना उनके अंदर उनके पैतृक वातावरण से उत्पन्न हुई, इसलिए उनके पैतृक वातावरण का उल्लेख किया जाना आवश्यक है, जो संक्षेप में इस प्रकार है:-

माननीय न्यायमूर्ति जी के पिता जी हमेशा से उनके आदर्श रहे है, न्यायमूर्ति चौधरी ने अपने जीवन काल में ऐसे कितने ही महत्वपूर्ण कार्य किए, जिससे कई विशेष समाज और जाति का उद्धार हुआ है. न्यायमू्र्ति डा. चौधरी कहते हैं कि पिता जी स्वयं ही अपने आप हम सब भाई-बहनों के साथ बैठकर अपने कार्यो एवं समाज सेवा को बताते थे, जिसे सुनकर सभी भाई-बहन आनन्दित और गर्वित होते थे. वहीं, घटनाएं न्यायमूर्ति जी के जीवन में शिक्षा के रूप में भी उभर कर आती रही हैं. जीवन के कई पायदानों में वह न्यायमूर्ति जी को सफलता भी प्राप्त कराती रही हैं. माननीय न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी जी के पिता स्व. चौधरी चुन्नी लाल जी ने 25 दिसम्बर 1930 को एक स्वर्णिय भविष्य लिए जन्म लिया. उन्होंने पिता स्व. चौधरी श्याम लाल एवं माता स्व. श्रीमती ललिता देवी के घर इलाहाबाद में अपनी प्रथम उपस्थिति का एहसास कराया. उनके पिता एवं माता जी ने ही बाल्यकाल से ही उनके तेजस्वी होने का सत्य भॉप लिया था, जिन पर ये कहावत चरित्रार्थ होती है.

‘‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’’
या
पूत के पॉव पालने में ही नज़र आ जाते हैं.

विरासत में ही जन्म से ही कुछ सौगातें उन्हें अवश्य मिलीं, माननीय न्यायमूर्ति चौधरी जी के दादा जी चौधरी श्याम लाल जी भी एक महान समाज सेवी और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंगेजों द्वारा दी हुई ‘राय साहब’ की उपाधि भी समाज के उद्धार के लिए त्याग दी थी. न्यायमूर्ति जी के पिता जी का जीवन काल जन्म से ही संघर्षमय होता गया पर उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारी, वह अपने शिक्षकों के प्रिय व होनहार शिष्य माने जाते रहे, हमेशा हर परीक्षा में अव्वल आते रहे, यहां तक कि वह भारत की सबसे गौरवान्वित नौकरी आई.पी.एस. प्रथम प्रयास में ही चयनित हुए, परन्तु उनके दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से वह उसे ज्वाइन नहीं कर सके और तीन वर्ष तक जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करते रहे, परन्तु उनकी इच्छाशक्ति के आगे ईश्वर को उनको जीवन दान देना ही पड़ा, परन्तु एक दुर्घटना में दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद एक तरह से उन्हें दूसरा जीवन मिला था और जीवन की गाड़ी आगे चलाने के क्रम में पिता जी ने पुनः एक बार वकालत की पढ़ाई करते हुए डिग्री हासिल की और एक विख्यात वकील बन गये, बाद में उनका उपनाम वकील साहब पड़ गया. वकालत के दौरान उनका सम्बंध कई वरिष्ठ राजनीतिज्ञों से हो गया.

सर्वप्रथम बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर द्वारा गठित भारतीय रिपब्लिकन पार्टी के नेता श्री वी.पी. मौर्या जी और श्री संघप्रिय गौतम जी से मिले, इस पार्टी से उन्हें सांसद का टिकट चायल से मिला, परन्तु कांग्रेस के श्री हेमवती नन्दन बहुगुणा जी के विरोध के कारण कुछ वोटों से परास्त हो गये, लेकिन इस हार में भी एक जीत निकल कर आई. इसी समय उनके सम्बंध बहुगुणा जी से बहुत अच्छे बन गये. बहुगुणा जी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पिता जी को लोक सेवा आयोग उ.प्र. का सदस्य मनोनीत किया, वहॉ पर उन्होंने सम्पूर्ण समाज एवं वंचित समाज के साथ पूरा न्याय किया, किसी को बेसहारा होने का एहसास तक नहीं होने दिया, जिसे लोग आज भी याद करते हैं. इस दौरान बहुगुणा जी उनके श्रद्धेय और आदर्श बन चुके थे. बहुगुणा जी के साथ उनके पारिवारिक सम्बंध हो गये. बहुगुणा जी के देहान्त के बाद न्यायमूर्ति जी के पिता काफी असहाय महसूस करते रहे, परन्तु ईश्वर को उनको इससे भी आगे ले जाना था और काफी सोच विचार के बाद पिता जी 1989 में भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ गये.

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में उनके जुझारू व्यक्तित्व को और अपने समाज के प्रति कुछ भी कर गुजरने की कार्य क्षमता को देखते हुए उन्हें उत्तर प्रदेश अनुसूचित मोर्चे का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. समय-समय पर वह अपनी सूझ-बूझ और अथक प्रयासों से पार्टी को लाभान्वित करते रहे, जिसमें कई बार उतार-चढ़ाव भी आये पर अपनी कर्तव्यनिष्ठा से कभी विमुख नहीं हुए. 1996 मे भाजपा से वह राज्य सभा सांसद बनाये गये, परन्तु अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये, सिर्फ चार वर्षो तक ही वह अपनी सेवा दे पाये थे कि वह अचानक मस्तिष्क आघात की वजह से 3 दिसम्बर 2000 की रात में चिर निद्रा में विलीन हो गये. उनके 69 वर्ष के अद्भुत व्यक्तित्व की व्याख्या कुछ शब्दों में व्यक्त कर पाना नामुमकिन है.

उन्होंने अपने जीवन में समाज के साथ-साथ पारिवारिक सफलता भी पूर्ण रूप से पायी. दूर-दूर के रिश्तेदारी को निभाना भी वह बखूबी जानते थे और यही शिक्षा उन्होने अपने बच्चों (चौधरी चन्दन लाल, रिटायर्ड डिप्टी डाईरेक्टर जनसम्पर्क, श्रीमती शशी चन्द्रा, स्व. निशी चौधरी रिटायर्ड ओ.एस.डी. माध्यमिक शिक्षा परिषद, माननीय न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी और श्रीमती मंजूपाल) को भी दी, इन सभी कार्यों में उनकी पत्नी, न्यायमूर्ति जी की माता स्व. रामेश्वरी चौधरी ने सदैव आगे बढ़कर उनका साथ निभाया और यह कहावत कि ‘‘एक सफल पुरूष के पीछे एक महिला का हाथ होता है’’ इसको शब्द व शब्द चरितार्थ किया. उनकी पत्नी स्व. श्रीमती रामेश्वरी चौधरी ने भी कमला बहुगुणा जी के साथ मिलकर कांग्रेस में एक सफल और जुझारू महिला कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया और समाज में अपना एक विशेष स्थान बनाया.

माननीय न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी के पिता स्व. चौधरी चुन्नी लाल जी एक पारखी व्यक्ति थे, इसका ज्वलंत उदाहरण यह है कि एक बार वे आगरा यूथ हास्टल संत गाडगे जयंती में सम्मिलित होने गए, वहॉ उन्होंने मधु चौधरी को देखा और एक नजर में ही मधु को अपने सुपुत्र गौतम चौधरी के लिए पसंद कर लिया और मधु चौधरी के माता-पिता को बिना दहेज शादी करने का प्रस्ताव दिया, अन्ततः बिना दान-दहेज मधु चौधरी का विवाह गौतम चौधरी के साथ करके अपने घर लाए तथा शादी के बाद मधु चौधरी की आगे की पढ़ाई करायी, सूट पहनने की अनुमति दिया तथा कार ड्राइविंग सीखने के लिए प्रोत्साहित किया तथा मृत्यु से पहले मधु चौधरी के सिर पर हाथ फेर कर आशीर्वाद दिया कि तुम सबसे छोटी हो, लेकिन तुम्हारी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है क्योंकि तुम हेड क्वार्टर में रहती हो. आज स्व. चौधरी चुन्नी लाल जी की पुत्रवधू मधु चौधरी न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी की धर्मपत्नी के रूप में संपूर्ण परिवार एवं रिश्तेदारियों को संजोए हुए हैं तथा परिवार को आगे बढ़ाने में अहम् भूमिका निभा रही हैं.

माननीय न्यायमूर्ति जी ने अपने पूर्वजों से यह सीख प्राप्त की कि सम्पूर्ण समाज एवं वंचित समाज के साथ पूरा न्याय किया जाय, किसी को बेसहारा होने का एहसास तक न होने दिया जाय, इसी भावना से ओत-प्रोत होते हुए माननीय न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी जी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत करते हुए भाजपा से लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी. शायद आपने अपना कुछ अलग ही लक्ष्य बना रखा था और उसके लिए प्रयत्नशील रहे. आज की राजनीति में अपने आप को उपयुक्त न पाने के कारण राजनीति से विमुख होकर पूरी तरह से वकालत के माध्यम से न्यायाधीश पद तक पहुंचने के लिए संघर्षरत हुए, अन्ततः इन्हें सफलता मिली और इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश के पद पर 12 दिसम्बर 2019 को आरूढ़ होने में कामयाब हुए.

शपथग्रहण के दिन ही माननीय न्यायमूर्ति जी ने अपने मन में यह ठान लिया था कि चूंकि हमारे प्रदेश एवं समाज के अधिकांश वादकारी सिर्फ हिन्दी ही समझते हैं और जब उनके पक्ष अथवा विपक्ष में उन्हें निर्णय-पत्र मिलता है तो उसे समझने के लिए उन्हें किसी न किसी आंग्लभाषी का सहारा लेना पड़ता है, वे स्वयं निर्णय की संपूर्ण जानकारी नहीं जान सकते, उनकी इस समस्या को देखते हुए ही न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी जी ने 20 दिसंबर 2019 को, जब वे न्यायालय में एकल न्यायपीठ में बैठे तो उन्होंने अपना पहला निर्णय हिन्दी में सुनाया और उसके बाद से उनका हिन्दी में निर्णय देने का यह सिलसिला अनवरत गति से चल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप ही न्यायमूर्ति जी अब तक तमाम जमानत आवेदनपत्रों, पुनरीक्षिण अर्जियों व अन्य मामले में 10 हजार पांच सौ से ज्यादा निर्णय दे चुके हैं, जिसकी संख्या भविष्य में बहुत अधिक पहुंचने की उम्मीद की जा सकती है.

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