Matsya 6000: चांद पर फतह के बाद अब ‘समुद्र मंथन’ की तैयारी, जानिए क्या है मकसद

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Samudrayaan Matsya 6000 Mission: भारत के लिए 23 अगस्त और 2 सितंबर का दिन ऐतिहासिक रहा. जहां एक तरफ चंद्रयान 3 मिशन (chandrayaan 3 mission) चांद की सतर पर उतरकर इतिहास रच दिया. वहीं, 2 सितंबर को आदित्य एल 1 मिशन (aditya l 1 mission) सूरज के रहस्यों को जानने के लिए रवाना किया गया. इसी बीच भारत अब समंदर की गहराइयों का रहस्य जानने के लिए अपने एक और मिशन की तैयारी कर रहा है. समंदर की गहराइयों में छिपे खनिज संसाधनों की जानकारी प्राप्त करने के लिए अब समुद्रयान मिशन (samudrayaan mission) भेजने की तैयारी पर काम शुरू हो चुका है. 6000 मीटर अंदर पनडुब्बी को बंगाल की खाड़ी में (Bay of Bengal) उतारकर टेस्टिंग की जाएगी.

समंदर में जाएंगे तीन लोग
आपको बता दें कि तीन लोग इस पनडुब्बी के जरिए समुद्र में 6 हजार मीटर की गहराई तक जाएंगे. 500 मीटर की गहराई से इसकी शुरूआत होगी और 2026 तक मत्स्य 6000 पनडुब्बी को इसे 6 हजार मीटर की गहराई तक ले जाया जाएगा. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नॉलजी (राष्‍ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्‍थान) के साइंटिस्टों ने मत्स्य 6000 को 2 साल की मेहनत के बाद बनाया है. अब इसकी बारीकी से जांच शुरू कर दी गई है.

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समुद्रयान मिशन की खासियत

  • 2.1 मीटर व्यास का गोला डिजाइन और विकसित किया गया है.
  • मत्स्य 6000 का वजन करीब 25 टन है.
  • इसकी लंबाई 9 मीटर और चौड़ाई 4 मीटर है.
  • पनडुब्बी 80mm के टाइटेनियम एलॉय से बनी है.
  • समंदर के अंदर 600 गुना ज्यादा प्रेशर झेलने में सक्षम है.
  • भारत सरकार ने 2021 में डीप ओशन को मंजूरी दी.
  • पहले फेस की शुरूआत 2024 में संभव.
  • अब तक केवल अमेरिका, फ्रांस, रूस, जापान, इंसानों को समंदर में इतनी गहराई तक ले जाने वाली सबमर्सिबल विकसित की हैं.

समुद्रयान मिशन का मकसद
समुद्रयान मिशन का उद्देश्य है कि, ये समंदर में अन्वेषण और दुर्लभ खनिज संसाधनों की खोज के लिये तीन इंसानों को ‘मत्स्य 6000’ नामक वाहन में 6000 मीटर की गहराई तक समुद्र में भेजेगा. गहराई में पाए जाने वाले लिथियम, तांबा और निकल बैटरी में इस्‍तेमाल होते हैं. वहीं, समुद्र की गहराई में कोबाल्‍ट और स्‍टील इंडस्‍ट्री के लिए जरूरी मैगनीज भी उपलब्‍ध है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के मुताबिक, 2030 तक वैश्विक स्तर पर करीब पांच गुना लिथियम और चार गुना ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत होगी. इसलिए यह मिशन भारत के लिए बहुत अहम बताया जा रहा है.

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