Congo-Rwanda Relations: अफ्रीकी महाद्वीप के दो पड़ोसी देश, कांगो गणराज्य और रवांडा ने एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. शुक्रवार को अमेरिका की मध्यस्थता में यह समझौता हुआ है. बता दें कि ईरान और इजरायल में युद्ध विराम कराने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि वह जल्द ही कांगो और रवांडा के बीच भी शांति समझौता कराएंगे. अब इसमें अमेरिका को सफलता हासिल हो गई है.
कांगो और रवांडा के विदेश मंत्रियों से मिले ट्रंप
यह समझौता पूर्वी कांगो में दशकों से जारी हिंसा को समाप्त करने और इस खनिज संपन्न क्षेत्र में अमेरिकी सरकार और कंपनियों की पहुंच को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. इस ऐतिहासिक मौके पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों से मिले. इन दौरान उन्होंने कहा कि, “आज हिंसा और विनाश के एक लंबे अध्याय का अंत हो गया है. अब यह पूरा क्षेत्र आशा, अवसर, सद्भाव, समृद्धि और शांति का एक नया अध्याय शुरू करने जा रहा है.”
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के संधि कक्ष में हुआ समझौता
यह समझौता अमेरिकी विदेश मंत्रालय के संधि कक्ष में संपन्न हुआ, जहां कांगो की विदेश मंत्री थेरेसे काइकवाम्बा वैगनर और रवांडा के विदेश मंत्री ओलिवियर नदुहुंगिरेहे ने हस्ताक्षर किए. इस दौरान अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस समझौते को तीस साल से चले आ रहे संघर्ष के बाद एक निर्णायक क्षण बताया. बता दें कि कांगो और रवांडा के बीच करीब 35 साल से संघर्ष चल रहा था.
अब तक लाखों लोग मारे गए
कांगो मध्य अफ्रीका का एक विशाल देश है. कांगो पिछले कई दशकों से 100 से अधिक सशस्त्र समूहों की हिंसा से त्रस्त रहा है. इनमें से कई शक्तिशाली गुटों को रवांडा का समर्थन मिला हुआ है. इस क्षेत्र में 1990 के दशक से लेकर अब तक लाखों लोग मारे जा चुके हैं और लाखों विस्थापित हुए हैं. ऐसे में यह समझौता एक आशाजनक कदम माना जा रहा है. हालांकि कई विश्लेषकों का मानना है कि यह पूरी तरह से संघर्ष को समाप्त नहीं करेगा. कुछ प्रमुख विद्रोही समूहों ने इस समझौते का बहिष्कार करते हुए कहा है कि यह उन पर लागू नहीं होता।
समझौते क्या स्थिर रहेगा?
समझौते के बाद आयोजित एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कांगो के विदेश मंत्री वैगनर ने कहा कि कुछ घाव जरूर भर जाएंगे, लेकिन उनके निशान शायद कभी न मिटें. वहीं रवांडा के विदेश मंत्री नदुहुंगिरेहे ने कहा कि हम एक अनिश्चित समय में प्रवेश कर रहे हैं. हालांकि यह समझौता उम्मीद की एक किरण है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है.
पिछली बार की तरह यदि इसे लागू नहीं किया गया, तो स्थिति फिर बिगड़ सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के लगातार समर्थन से इस बार शांति की राह पर ठोस प्रगति की जा सकती है. इस दौरान उन्होंने अमेरिका के अलावा खाड़ी देश कतर के सहयोग की भी प्रशंसा की, जिसने इस प्रक्रिया में मध्यस्थता और समर्थन दिया.
समझौता टूटा तो क्या होगा
जब राष्ट्रपति ट्रंप से पूछा गया कि अगर यह समझौता टूट गया तो अमेरिका की क्या प्रतिक्रिया होगी, इस पर उन्होंने साफ तौर पर कहा कि उन्हें नहीं लगता कि ऐसा होगा. लेकिन उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि समझौते का उल्लंघन हुआ, तो जिम्मेदार पक्ष को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
यह समझौता अमेरिका के लिए न केवल राजनयिक सफलता है, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी अहम है, क्योंकि कांगो क्षेत्र बहुमूल्य खनिजों से भरपूर है, जिनका इस्तेमाल वैश्विक तकनीकी उत्पादों, खासकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और बैटरियों में होता है. इस क्षेत्र में स्थिरता आने से अमेरिकी कंपनियों को इन खनिजों तक कानूनी और सुरक्षित पहुंच मिल सकेगी.
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