भीषण तबाही के बीच दो हिस्सों में बंट जाएंगे ये देश! धीरे-धीरे खिसक रही टेक्टोनिक प्लेट्स, वैज्ञानिकों ने जारी की चेतावनी

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Countries Division: पृथ्वी की सतह के नीचे की विशाल चट्टानी प्लेट्स स्थित है, जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट्स कहते हैं. ये प्लेट्स पृथ्वी के मेंटल पर तैरती रहती हैं और धीरे-धीरे खिसकती हैं, जो कई हजार या यूं कहें तो लाखों वर्षो के बाद बड़े भूवैज्ञानिक परिवर्तनों का कारण बनती है और अब यहीं बदलाव अफ्रीका महाद्वीप में देखा जा रहा है…

भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक, पूर्वी अफ्रीका में दो प्रमुख टेक्टोनिक प्लेट्स- न्युबियन और सोमालियाई, एक-दूसरे से दूर जा रही हैं. यह अलगाव पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम (EARS) का निर्माण कर रहा है, जो पृथ्वी पर सबसे सक्रिय भूवैज्ञानिक क्षेत्रों में से एक है. वैज्ञानिकों का मानना है यह प्रक्रिया एक नए महासागर के जन्म की शुरुआत मान रहे हैं, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.

3,500 किलोमीटर तक फैला यह क्षेत्र

बता दें कि EARS इथियोपिया से शुरू होकर केन्या, तंजानिया और मोजाम्बिक तक करीब 3,500 किलोमीटर तक फैला हुआ है. यह क्षेत्र टेक्टोनिक प्लेटों के खिंचाव और पतले होने के कारण होने वाली दरारों और भ्रंशों की एक श्रृंखला से चिह्नित है. हालाकि यह प्रक्रिया इतनी धीमी है कि एक साल मे ये प्लेटें महज कुछ ही मिलीमीटर खिसकती हैं, लेकिन लाखों सालों में यह एक महत्वपूर्ण अंतर पैदा कर सकती है.

नए महासागर का होगा जन्म

भूवैज्ञानिकों के मुतबिक, जब टेक्टोनिक प्लेटें अलग होती हैं, तो उनके बीच की जमीन खिंचती और पतली होती है, जिससे दरारें बनने लगती और धीरे धीरे गहरी होती जाती हैं. जिसके बाद वैज्ञानिक मानते हैं कि इन दरारों में लाल सागर और अदन की खाड़ी का पानी भर सकता है, जिससे अंततः एक नया महासागर बनेगा. यह प्रक्रिया लाखों साल पहले अटलांटिक महासागर के बनने के समान है.

अफार क्षेत्र में 2005 की घटना

वैज्ञानिकों के मुताबिक, साल 2005 में इथियोपिया के अफार क्षेत्र में 420 से अधिक भूकंपों की एक श्रृंखला ने 60 किलोमीटर लंबी और 10 मीटर गहरी दरार बना दी, जो वैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत थी कि अफ्रीका का विभाजन उम्मीद से कहीं तेज हो रहा है. उन्‍होंने बताया कि यह दरार हर साल करीब आधा इंच चौड़ी हो रही है, जो नए महासागर के बनने की प्रक्रिया को दर्शाती है.

कौन-कौन से देश होंगे प्रभावित देश?

इस टेक्टोनिक परिवर्तन से इथियोपिया, केन्या, तंजानिया और सोमालिया जैसे देश सबसे अधिक प्रभावित होंगे. वहीं, भविष्‍य में युगांडा, जाम्बिया और रवांडा जैसे लैंडलॉक्ड देशों को समुद्री तट मिल सकता है, जिससे उन्हें समुद्री व्यापार और अर्थव्यवस्था के नए अवसर मिलेंगे. वहीं, सोमालिया और इथियोपिया का कुछ हिस्सा एक अलग महाद्वीप बन सकता है, जिसे वैज्ञानिक ‘न्युबियन महाद्वीप’ कह रहे हैं.

परिवर्तनों पर वैज्ञानिकों की नजर  

बता दें कि वैज्ञानिक जीपीएस ट्रैकिंग, भूकंपीय डेटा और सैटेलाइट इमेजरी का इस्‍तेमाल कर इन भूवैज्ञानिक परिवर्तनों पर बारीकी से नजर रख रहे हैं. अफार क्षेत्र में मैग्मा की गतिविधियां और भ्रंश विस्तार इस प्रक्रिया को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. यह अनुसंधान पृथ्वी के भविष्य को समझने के लिए महत्वपूर्ण है.

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