इजरायल के इस शहर को अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि ‘भारतीय सैनिको’ ने कराया था आजाद, बेहद चौकाने वाला खुलासा!

Haifa: इजरायल के शहर हाइफा में सोमवार को भारतीय सैनिकों को याद करते हुए उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित की गई. इन शहीद भारतीय सैनिकों ने ही पहले विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य के कब्जे से हाइफा शहर को मुक्त कराया था. हाइफा के मेयर योना याहाव ने भारतीय सैनिकों की शहादत को नमन करते हुए पूरी कहानी बताई. मेयर याहाव ने बताया कि उन्होंने बचपन में यही सीखा था कि ब्रिटिशों ने शहर को आजाद कराया लेकिन स्थानीय इतिहासकारों के सबूतों ने दिखाया कि वास्तव में यह काम भारतीय सैनिकों ने किया था.

हाइफा को ब्रिटिश नहीं बल्कि भारतीयों ने मुक्त कराया

मेयर याहाव ने कहा कि हम हर स्कूल की किताबों में यह बदलाव कर रहे हैं और बता रहे हैं कि हाइफा को ब्रिटिश नहीं बल्कि भारतीयों ने मुक्त कराया. इतिहासकारों के अनुसार, 23 सितंबर 1918 को मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर के भारतीय घुड़सवार रेजिमेंट्स ने माउंट कार्मेल से ओटोमन सेना को हटा दिया. इस अभियान को इतिहास में अंतिम महान घुड़सवारी अभियान कहा जाता है. इस लड़ाई में मेजर दलपत सिंह को हीरो ऑफ हाइफा कहा गया.

युद्ध में जोधपुर लांसर्स के आठ सैनिक हुए थे शहीद

कैप्टन अमन सिंह बहादुर और डाफादर जोर सिंह को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (IOM) और कैप्टन अनूप सिंह और 2nd  लेफ्टिनेंट सगात सिंह को मिलिट्री क्रॉस (MC) से सम्मानित किया गया. युद्ध में जोधपुर लांसर्स के आठ सैनिक शहीद और 34 घायल हुए, लेकिन रेजिमेंट ने 700 से अधिक कैदियों, 17 फील्ड गन और 11 मशीन गनें कब्जा में लीं. भारत में हर साल 23 सितंबर को हाइफा डे मनाया जाता है. भारतीय दूतावास और इजरायली अधिकारियों की मदद से द इंडिया ट्रेल बनाकर इस बहादुरी को यादगार बनाया जा रहा है.

इजराइल ने भारतीय सैनिकों के सम्मान में जारी किया स्मारक डाक टिकट

हाइफा, जेरूसलम और रामले में भारतीय सैनिकों के कब्रिस्तान में श्रद्धांजलि दी जाती है, जहां लगभग 900 सैनिक दफन हैं. 2018 में इजराइल पोस्ट ने भारतीय सैनिकों के सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया. 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाइफा कब्रिस्तान गए और अगले साल दिल्ली के टीन मूर्ति चौक का नाम बदलकर टीन मूर्ति हाइफा चौक रखा गया. सितंबर 1918 मेंए होली लैंड में ओटोमन मोर्चा ढह रहा था. हाइफा का कब्जा इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह डीप-वॉटर पोर्ट था, जिससे गठबंधन सेनाओं को आपूर्ति भेजी जा सकती थी.

इम्पीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड को दिया गया हाइफा कब्जा करने का कार्य

ओटोमन सेना, जर्मन मशीन गनों के साथ मजबूत स्थिति में थी. 15वीं इम्पीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड को हाइफा कब्जा करने का कार्य दिया गया, जिसमें जोधपुर लांसर्स (राजस्थान), मैसूर लांसर्स (दक्षिण भारत) और हैदराबाद लांसर्स की सहायता शामिल थी. भारतीय सैनिकों ने लांस से लैस होकर मशीन गन की बारिश के बावजूद ओटोमन ठिकानों पर हमला किया. करीब 44 भारतीय सैनिक शहीद या घायल हुए और सैकड़ों ओटोमन और जर्मन सैनिकों को पकड़ लिया गया.

मेरे पिता भारत से आए थे…

इस कार्यक्रम का इजरायल के भारतीय समुदाय के लिए भी बड़ा महत्व था. द जेरूसलम पोस्ट के अनुसार रीना पुष्कर्णा एक तंदूरी रेस्तरां श्रृंखला की संस्थापक कहती हैं कि मेरे पिता भारत से आए थे. यह साहसिक संबंध जानकर आश्चर्य हुआ कि हाइफा और भारतीय इतिहास के बीच ऐसा गहरा जुड़ाव है. आज हाइफा सहअस्तित्व का मॉडल माना जाता है, जहां करीब 1 मिलियन की आबादी में 80% यहूदी, 14% ईसाई, 4% मुस्लिम और 2% द्रूज हैं.

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