पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने 27वें संविधान संशोधन के विरोध में दिया इस्तीफा, बोले- दशकों पीछे चला गया देश

Aarti Kushwaha
Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Must Read
Aarti Kushwaha
Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Pakistan: पाकिस्तानी संसद में सबसे विवादित संशोधन विधेयक के पारित होते ही सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने अपना इस्तीफा सौंप दिया. वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह और न्यायमूर्ति अतहर मिनल्लाह ने इस विधेयक के विरोध में इस्तीफा दिया है.

दशकों पीछे चला गया देश

न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह ने अंग्रेजी और उर्दू दोनों में अपना इस्तीफा लिखा. ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के मुताबिक अपने 13 पृष्ठों के इस्तीफे में शाह ने कहा कि 27वां संविधान संशोधन पाकिस्तान के संविधान पर एक गंभीर हमला है.  उन्होंने कहा कि न्यायपालिका विभाजित हो गई है, जिससे देश दशकों पीछे चला गया है.

उन्‍होंने कहा कि 27वें संविधान संशोधन ने पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय को खंडित कर दिया है. इसने न्यायपालिका को सरकार के नियंत्रण में ला दिया है. साथ ही यह संशोधन पाकिस्तान के संवैधानिक लोकतंत्र की भावना को लगा एक गंभीर झटका है.

संविधान की रक्षा करने की ली थी शपथ

वहीं, न्यायमूर्ति अतहर मिनल्लाह ने अपने त्यागपत्र में कहा कि जब उन्होंने 11 साल पहले पद की शपथ ली थी, तो उन्होंने “किसी संविधान” की नहीं, बल्कि “संविधान” की रक्षा करने की शपथ ली थी. 27वें संविधान संशोधन के पारित होने से पहले, उन्होंने पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर देश की संवैधानिक व्यवस्था पर प्रस्तावित बदलावों के प्रभाव के बारे में चिंता जताई थी.

कब्र पर टि‍की है संविधान की नींव

उन्होंने आगे कहा, “मुझे उस पत्र की विस्तृत सामग्री को दोहराने की जरूरत नहीं है, लेकिन इतना कहना ही काफी है कि चुनिंदा चुप्पी और निष्क्रियता की पृष्ठभूमि में, वे आशंकाएं अब सच हो गई हैं.” इस दौरान न्यायाधीश ने इस बात पर अफसोस जताया कि जिस संविधान की रक्षा करने की उन्होंने शपथ ली थी, वह “अब नहीं रहा”, और चेतावनी दी कि संशोधन के तहत रखी गई नई नींव उसकी “कब्र” पर टिकी है.

मौन और मिलीभगत दोनों ही माध्‍यम से विश्वासघात के प्रतीक

न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने लिखा, “जो बचा है वह सिर्फ एक परछाई है, जो न तो अपनी आत्मा को सांस देती है और न ही उन लोगों के शब्द बोलती है जिनसे वह संबंधित है.” उन्होंने न्यायिक वस्त्रों के महत्व पर भी विचार करते हुए कहा, “ये वस्त्र जो हम पहनते हैं, वे केवल आभूषणों से कहीं अधिक हैं. ये उन लोगों पर किए गए नेक भरोसे की याद दिलाते हैं जो इन्हें धारण करने के लिए भाग्यशाली हैं. इसके बजाय, हमारे पूरे इतिहास में, ये प्रायः मौन और मिलीभगत, दोनों के माध्यम से विश्वासघात के प्रतीक रहे हैं. ”

न्यायाधीश मंसूर अली शाह ने दी ये चेतावनी

10 नवंबर को, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश मंसूर अली शाह ने पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति याह्या अफरीदी को लिखे एक पत्र में चेतावनी दी थी कि यदि न्यायपालिका एकजुट नहीं रही, तो उसकी स्वतंत्रता और फैसले खतरे में पड़ जाएंगे.  उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इतिहास उन लोगों को याद नहीं रखता जो चुप रहते हैं, बल्कि उन लोगों का सम्मान करता है जो संविधान की सर्वोच्चता के लिए खड़े होते हैं.

नए संविधान संशोधन की उपयुक्तता पर सवाल

न्यायमूर्ति शाह ने 26वें संविधान संशोधन से संबंधित मुद्दों के अनसुलझे रहने के बीच एक नए संविधान संशोधन की उपयुक्तता पर सवाल उठाया. पत्र में आगे कहा गया है कि संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्थापना को लंबित मामलों के आधार पर उचित ठहराया जा रहा है, हालांकि इनमें से अधिकांश मामले जिला न्यायपालिका स्तर पर हैं, सर्वोच्च न्यायालय स्तर पर नहीं.

इसे भी पढें:-Encounter: मुठभेड़ में मारे गए 6 नक्सलियों की हुई पहचान, सेंट्रल एरिया कमेटी का प्रभारी भी शामिल

Latest News

Gold Silver Price Today: चांदी ने लगाई लंबी छलांग, सोने के गिरे भाव, जानें रेट

Gold Silver Price Today: अगर आप सोने चांदी की खरीदारी करने की सोच रहे हैं, या फिर सोने चांदी...

More Articles Like This