Islamabad: पाकिस्तान में 27वें संविधान संशोधन के बाद बडे बदलाव देखने को मिलने लगे हैं. चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज फील्ड मार्शल जनरल असीम मुनीर अब लगातार अपना दबदबा कायम कर रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने अपने परमाणु भंडार का कंट्रोल बदलने का फैसला किया है, इसके लिए पाकिस्तान के शासकों ने संविधान में संशोधन कर दिया है. इस बार खुलेआम सेना अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रही है.
नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश
सेना की ही सहायता से जीते 2024 के चुनावों में जीत का एहसान चुकाने के लिए पाकिस्तान के शासक 27वें संविधान संशोधन के जरिए सेना के आधुनिकीकरण के नाम पर सेना की सर्वोच्चता को स्वीकार करते हुए उसी की डगर पर चलने को खुशी-खुशी राजी हो गए हैं. अब पाकिस्तान की सेना में सेना की चार सितारा वाले पदों पर नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश भले ही प्रधानमंत्री द्वारा की जाएगी पर वास्तव में नियुक्त उसे ही किया जाएगा जिसे सेना चाहेगी.
नई व्यवस्था के परिणाम अत्यंत गंभीर
इस नई व्यवस्था के परिणाम अत्यंत गंभीर हो सकते हैं. इससे वह संतुलन भी समाप्त हो जाएगा जो एक शांत लेकिन दक्षिण एशिया के नाजुक सुरक्षा पर्यावरण की स्थिरता का महत्वपूर्ण स्रोत है. वर्ष 2000 में पाकिस्तान ने अपने परमाणु भंडार के नियंत्रण के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली अपनी राष्ट्रीय कमांड अथारिटी कायम की. इसके सदस्यों में प्रमुख कैबिनेट मंत्रियों के अलावा तीनों सेनाओं के प्रमुखों को सदस्यों के रूप में शामिल किया गया था ताकि किसी एक सेवा का इसके परमाणु स्रोत पर नियंत्रण न हो पाए और सुरक्षा पर कोई आंच न आए.
27वें संशोधन से संतुलन भंग
इस व्यवस्था के तहत सेना को एकतरफा तौर पर परमाणु नीति नियंत्रित करने से रोक दिया गया था. पर 27वें संशोधन ने यह संतुलन भंग कर दिया है. ज्वायंट चीफ आफ स्टाफ कमेटी (सी.जे.सी.एस.सी.) को समाप्त करके और सारी शक्तियां प्रतिरक्षा सेनाओं के मुखिया में निहित करके इस संशोधन द्वारा परमाणु सुरक्षा संतुलन को समाप्त कर दिया गया है जो एक खतरनाक बात है.

