New Delhi: चीन की दमनकारी नीतियों से परेशान तिब्बत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन जुटाने के लिए भारत की ओर रूख किया है. तिब्बती संसद-इन-एक्साइल ने नई दिल्ली में एक संगठित और व्यापक एडवोकेसी अभियान शुरू किया है. यह पहल भारतीय संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान की गई ताकि भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन जुटाया जा सके.
दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज
बता दें कि तिब्बत लंबे समय से चीन की जारी कब्ज़े और दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठा रहा है. चीन से दलाई लामा या लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित तिब्बती नेतृत्व के प्रतिनिधियों के साथ बिना किसी शर्त के संवाद शुरू करने की अपील की गई है. केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के मुताबिक स्पीकर खेन्पो सोनम तेनफेल के नेतृत्व में संसद की स्थायी समिति के सदस्यों ने चीन की दमनकारी शासन व्यवस्था, मानवाधिकार उल्लंघनों और संसाधनों के शोषण को उजागर किया. अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए प्रतिनिधिमंडल को तीन समूहों में बांटा गया.
तीनों समूहों ने भारत के राज्यों में किया दौरा
पहले समूह ने पश्चिम बंगाल के सांसद खगेन मुर्मू, इंटरफेथ कोएलिशन फॉर पीस के अध्यक्ष डॉ. सैयद ज़फर महमूद और राज्यसभा सांसद सजीत कुमार से मुलाकात की. दूसरे समूह ने केरल से लोकसभा सांसद एनके प्रेमचंद्रन, राज्यसभा सांसद के.आर. सुरेश रेड्डी और मिजोरम के सांसद रिचर्ड वनलालहमंगईहा से संवाद किया. तीसरे समूह ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद जगदीश शेट्टर, दमन-दीव के सांसद उमेशभाई पटेल और लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा से मुलाकात की.
तिब्बत को ऐतिहासिक रूप से एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता
इन बैठकों में तिब्बती प्रतिनिधियों ने स्पष्ट रूप से मांग की कि तिब्बत को ऐतिहासिक रूप से एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी जाए, जिस पर चीन ने अवैध कब्ज़ा कर रखा है. प्रतिनिधिमंडल ने चीन से आग्रह किया कि वह दलाई लामा या लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित तिब्बती नेतृत्व के प्रतिनिधियों के साथ बिना किसी शर्त के संवाद शुरू करे. इसके साथ ही प्रतिनिधियों ने UNFCCC से अपील की कि तिब्बत में चीन द्वारा किए जा रहे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और उसके वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन कराया जाए.
संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों को आमंत्रित
तिब्बती संसद ने यह भी मांग की कि चीन स्वतंत्र मानवाधिकार संगठनों को तिब्बत में बिना रोक-टोक प्रवेश की अनुमति दे और संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों को आमंत्रित करे. खासकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा से जुड़े मामलों में. इसके अलावा, चीनी नेटवर्क्ड ऑथोरिटेरियनिज़्म और दुष्प्रचार अभियानों से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विधायी ढांचे की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं और वैश्विक स्थिरता को कमजोर कर रहे हैं.
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