बांग्लादेश में ‘क्रांति’ के बाद अब ‘कुर्सी’ की लड़ाई! चुनावी प्रक्रिया को बदलने की मांग कर रहें छात्र नेता

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Bangladesh Election Reform: पिछले साल 5 अक्‍टूबर को बांग्लादेश के पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के अपदस्‍थ होने के बाद से ही देश की राजनीति में स्थिरता नहीं आई है. वहीं, अब तो इसमें एक नया मोड़ आ गया है. दरअसल, पिछले साल जिन छात्र नेताओं ने आंदोलन करके सरकार बदल दी और ‘क्रांति’ का दावा किया, अब वो खुद कुर्सी के मोह में घिरते नजर आ रहे हैं.

बता दें कि ‘नेशनल सिटिजन पार्टी’ (NCP) और कुछ छोटी-छोटी इस्लामिक पार्टियां मिलकर देश में चुनाव का तरीका बदलने की मांग कर रहीं है. उनका कहना है कि बांग्लादेश में चुनाव ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व’ (Proportional Representation) प्रणाली से कराए जाएं. दरअसल, NCP वहीं, उन्‍हीं आंदोलनकारी छात्रों की पार्टी है, जिन्‍होंने शेख हसीना को पीएम के पद से इस्‍तीफा देने पर मजबूर कर दिया था.

खालिदा जिया की पार्टी ने NCP का किया विरोध

हालांकि ‘नेशनल सिटिजन पार्टी’ (NCP) के मांग का खालिदा जिया की ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ (BNP) जमकर विरोध कर रही है. दरअसल, BNP का कहना है कि जो लोग यह मांग कर रहे हैं, उनका मकसद ठीक नहीं है. या तो वो चुनाव में देरी चाहते है या फिर चुनाव चाहते ही नहीं हैं.

क्या होता है आनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिस्टम?

दरअसल भारत और बांग्लादेश में चुनाव का जो सिस्टम है, उसे ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ कहते हैं, यानी ‘जो जीता वही सिकंदर’. इसमें चुनाव के दौरान जिस उम्मीदवार को अपने क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, वो जीत जाता है, भले ही बाकी सारे वोट उसके खिलाफ पड़े हों, लेकिन आनुपातिक प्रतिनिधित्व में ऐसा नहीं होता. इस सिस्टम में पार्टियों को उतने ही प्रतिशत सीटें मिलती हैं, जितने प्रतिशत उन्हें वोट मिले होते हैं.

क्‍यों नया सिस्‍टम चाहती हैं NCP और इस्लामिक पार्टियां

NCP के सदस्‍य ये अच्‍छी तरह से जानते है कि भले ही उन्होंने पिछले साल देश की सरकार बदलने में बड़ी भूमिका निभाई हो, लेकिन जनता उन्हें अकेले दम पर सत्ता में नहीं लाएगी. ऐसे में उन्हें डर है कि मौजूदा चुनावी सिस्टम में उन्हें शायद एक भी सीट न मिले. वहीं, यदि आनुपातिक प्रतिनिधित्व सिस्‍टम लागू हो जाती है, तो 5-10% वोट पाकर भी वे कुछ सीटें जीत सकते हैं, जिससे उन्‍हें संसद में पहुंचने और गठबंधन सरकार में शामिल होने का मौका मिल जाएगा.

BNP क्यों कर रही विरोध?

दरअसल, बांग्‍लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद BNP खुद को सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार मान रही है. ऐसे में उसे भरोसा है कि मौजूदा चुनाव प्रणाली में वह आसानी से बहुमत हासिल कर लेगी. लेकिन यदि चुनावी नियम बदल गया तो छोटी-छोटी पार्टियां भी सीटें जीत जाएंगी, जिससे BNP कमजोर हो सकती है और उसे सरकार बनाने के लिए इन छोटी पार्टियों पर निर्भर रहना पड़ सकता है.

आगे क्या होगा?

एक तरफ सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार BNP पुराने नियमों से ही चुनाव चाहती है, तो वहीं दूसरी ओर राजनिति के नए खिलाड़ी NCP और छोटी इस्लामिक पार्टियां नए नियम के सहारे सत्ता में अपनी जगह पक्की करना चाहती हैं. दोनों पार्टियों के बीच यह लड़ाई दिखाती है कि बांग्लादेश में ‘क्रांति’ के बाद अब असली खेल ‘कुर्सी’ का शुरू हो गया है. ऐसे में अब देखना ये होगा दोनों पार्टीयों में से कौन अपने मंसूबों में कामयाब होता है.

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