अल्लूरी सीताराम राजू की 128वीं जयंती आज, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सीएम एन चंद्रबाबू नायडू ने दी श्रद्धांजलि

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू (Alluri Sitaram Raju) की 128वीं जयंती पर उन्हें नमन किया. उन्होंने महान स्वतंत्रता सेनानी को जनजातीय समुदायों का मान बताया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोशल मीडिया मंच एक्‍स पर पोस्‍ट कर लिखा, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ रम्पा विद्रोह का नेतृत्व किया और जनजातीय समुदायों के अधिकारों और सम्मान के लिए वे डटकर खड़े रहे. उनका बलिदान और संघर्ष का जीवन हमें न्याय और आत्मसम्मान की खोज में प्रेरित करता है.

सीएम एन चंद्रबाबू नायडू ने भी दी श्रद्धांजलि

आंध्र प्रदेश के सीएम एन चंद्रबाबू नायडू (N Chandrababu Naidu) ने अल्लूरी सीताराम राजू की जयंती पर सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट कर लिखा, मान्यम लोगों के सम्मान और जीवन की रक्षा के लिए, उन्होंने अंग्रेजों से मुकाबला किया और अपने प्राणों की आहुति दे दी. एक तेलुगू नायक जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को क्रांति की ओर प्रेरित किया. अल्लूरी की 128वीं जयंती के अवसर पर, आइए हम उनकी देशभक्ति और उनके संघर्ष को याद करें.
अल्लूरी सीताराम राजू की जयंती पर देश भर में लोग उनके योगदान को याद कर रहे हैं. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में, जहां उनकी स्मृति विशेष रूप से जीवंत है, कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. स्कूलों और समुदायों में उनके जीवन पर चर्चाएं हो रही हैं, ताकि युवा पीढ़ी उनके साहस और समर्पण से प्रेरणा ले सके.
बता दें श्री अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई 1897 को आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम के पास पांड्रंगी गांव में हुआ था. बचपन से ही उनमें देशभक्ति और सामाजिक न्याय की भावना थी. 1920 के दशक में उन्होंने ब्रिटिश शासन की ज्यादतियों के खिलाफ राम्पा विद्रोह का नेतृत्व किया, जो विशेष रूप से जनजातीय समुदायों के अधिकारों और सम्मान के लिए लड़ा गया. यह विद्रोह आंध्र प्रदेश के गोदावरी क्षेत्र में केंद्रित था, जहां ब्रिटिश नीतियों ने जनजातीय लोगों के जीवन को प्रभावित किया था. अल्लूरी ने स्थानीय जनजातियों को संगठित किया और गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी. उनका साहस और नेतृत्व इतना प्रभावशाली था कि ब्रिटिश प्रशासन उन्हें मान्यम वीरुडु, यानी जंगल का नायक, कहने लगा. 7 मई 1924 को, मात्र 26 वर्ष की आयु में वे ब्रिटिश सेना के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गए, लेकिन उनका बलिदान आज भी अमर है.
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