कभी हत्या का सबूत, आज श्रद्धा का संदेश… ब्लूड्रम कांड का नया ट्विस्ट, न्याय का मसीहा बनने की राह पर कांवड़िया

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Kanwar Yatra 2025: कभी एक नृशंस हत्या कांड की वजह से बदनाम हुआ नीला ड्रम, अब एक शिवभक्त की आस्था और संकल्प का प्रतीक बनता जा रहा है. दरअसल, हाल ही में मेरठ के सौरभ कुमार हत्याकांड मामले में जिस नीले ड्रम को देखकर लोगों की रूह कांप जाती थी, असी ड्रम को आज गाजियाबाद का एक 16 वर्षीय लड़का गंगाजल से भरकर अपने कंधों पर उठाए चला है… मुक्ति संकल्प की ओर.

बता दें कि गाजियाबाद के रहने वाले शिवम, 16 साल की उम्र में एक अनोखी कावड़ यात्रा पर निकलें है. इस दौरान वो अपने कंघों पर गंगाजल से भरें दो नीले ड्रम को लेकर हरिद्वार से पैदल यात्रा करके लौट रहे हैं. दोनों ड्रमों में कुल 101 लीटर गंगाजल है, जिसे वह अपने माता-पिता को स्नान कराने और मृत आत्मा की मुक्ति के लिए समर्पित करेंगे.

नीले ड्रम का होगा शुद्धिकरण

वहीं, शिवम ने राहगीरों से बातचीत में कहा कि “नीला ड्रम मुस्कान की वजह से बदनाम हुआ था, अब मैं इसमें गंगाजल लेकर आया हूं, जिससे इसका शुद्धिकरण हो सके.” दरअसल शिवम का मनना है कि बुराई से जुड़ी चीजों को नकारने से बेहतर है उनमें अच्छाई भर देना. अपने इसी सोच को लेकर वो लोगों को ये संदेश देना चाहते है कि जो प्रतीक डर और घृणा का बन गया था, उसे श्रद्धा और सेवा का रूप दिया जा सकता है.

कभी हत्या का सबूत, आज श्रद्धा का संदेश

वैसे तो आप सभी को याद ही होगा, लेकिन फिर भी आपको बता दें कि ये वहीं नीला ड्रम है जिसने पूरे देश को हिला दिया था जब सौरभ की हत्या कर उसकी पत्नी मुस्कान और प्रेमी साहिल ने शव को टुकड़ों में काटकर ड्रम में भर दिया था. इस घटना सिर्फ मेरठ ही नही, बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नीले ड्रम को लेकर भय और अंधविश्वास फैल गया था. कई लोगों ने अपने घरों से ड्रम फेंक दिए थे, लेकिन आज उसी ड्रम को उठाकर एक किशोर शिवभक्त कह रहा है…’’यह अब पाप का नहीं, पुण्य का पात्र है.’’

श्रद्धा की नई मिसाल

शिव भक्‍त शिवम की ये अनोखी पहल सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है, जिसे लोग सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, साहस और संदेश का संगम मान रहे हैं.क्‍योंकि गाजियाबाद से हरिद्वार और वापस पैदल यात्रा, और उसमें भी 101 लीटर गंगाजल का भार लेकर ये कोई साधारण काम नहीं है. और वो भी उस वक्‍त जब उद्देश्य किसी आत्मा की मुक्ति और समाज को नई सोच देना हो, तो यह यात्रा और भी पावन बन जाती है.

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