एसबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय क्रेडिट मार्केट (Indian credit market) में कुछ संरचनात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं, जिसमें हेडलाइन बैंक क्रेडिट ग्रोथ और माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) क्रेडिट ने क्रेडिट ग्रोथ में समग्र हेडलाइन ट्रेंड को पीछे छोड़ दिया है. मौजूदा उधारकर्ताओं को ऋण की आपूर्ति में वृद्धि देखी गई है, जिसमें एमएसएमई सेक्टर (MSME sector) की बैलेंस शीट में गंभीर चूक में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है, जिसे 90 से 120 दिनों के बकाया (DPD) के रूप में मापा गया और सब-स्टैंडर्ड के रूप में रिपोर्ट किया गया, जो घटकर पांच वर्ष के निचले स्तर 1.8% पर आ गया है.
एमएसएमई सेक्टर की परिभाषा में किया गया बदलाव
भारतीय स्टेट बैंक के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. सौम्य कांति घोष के अनुसार, यह सुधार, विशेष रूप से 50 लाख रुपए से 50 करोड़ रुपए तक के ऋण लेने वाले उधारकर्ताओं के बीच, पिछले वर्ष की तुलना में 35 आधार अंकों की गिरावट दर्शाता है. घोष ने रिपोर्ट में बताया है कि एमएसएमई सेक्टर की परिभाषा में बदलाव किया गया है. उदाहरण के लिए, मध्यम उद्यमों के लिए टर्नओवर सीमा बढ़ाकर 500 करोड़ रुपए कर दी गई है. इस प्रकार, एमएसएमई ऋण वृद्धि को और भी बढ़ाया जा सकता है. यूआरएन सीडिंग की मदद से एमएसएमई का औपचारिकीकरण एमएसएमई ऋण वृद्धि को आवश्यक प्रोत्साहन दे रहा है. उद्यम रजिस्ट्रेशन नंबर (URN) उन व्यवसायों के लिए एक स्थायी पहचान संख्या है, जो एमएसएमई परिभाषा के तहत खुद को पंजीकृत कराना चाहते हैं और गारंटी कवर प्राप्त करना चाहते हैं.
27 जून तक, उद्यम असिस्ट प्लेटफॉर्म के माध्यम से कुल 2.72 करोड़ पंजीकरण किए जा चुके हैं. घोष ने जोर देकर कहा, सरकार ने विभिन्न श्रेणी के एमएसएमई उधारकर्ताओं को बेहतर गारंटी कवर प्रदान करके एक बड़ी पहल की है, जिसमें CGTMSE कवर को 5 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 करोड़ रुपए करना, एमएसएमई मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए म्यूचुअल क्रेडिट गारंटी योजना (100 करोड़ रुपए तक के ऋण के लिए), स्टार्टअप को दिए जाने वाले ऋणों के लिए क्रेडिट गारंटी कवर को 10 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपए करना, निर्यातकों के लिए 20 करोड़ रुपए तक के टर्म लोन के लिए क्रेडिट गारंटी कवर की शुरुआत करना शामिल है. ये सभी पहल एमएसएमई ऋण वृद्धि को भी बढ़ावा देती हैं.
भारतीय उद्योग जगत ने अपनी बैलेंस शीट में किया सुधार
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय उद्योग जगत ने अपनी बैलेंस शीट में महत्वपूर्ण सुधार किया है और अपनी कैश होल्डिंग में वृद्धि की है. पिछले दो वर्षों (वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025) में, भारतीय कंपनियों के नकदी और बैंक बैलेंस में लगभग 18-19% की वृद्धि हुई है. कैश होल्डिंग में वृद्धि दर्ज करने वाले प्रमुख क्षेत्रों में आईटी, ऑटोमोबाइल, रिफाइनरियां, बिजली, फार्मा आदि शामिल हैं. FY25 में भारतीय उद्योग जगत का नकदी और बैंक बैलेंस, बीएफएसआई को छोड़कर, लगभग 13.5 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है.