लाल किले से मोदी का 2025 संदेश: अशांत विश्व में भारत की संप्रभुता का संकल्प

Upendrra Rai
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Chairman & Managing Director, Editor-in-Chief, The Printlines | Bharat Express News Network
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) का 103 मिनट लंबा स्वतंत्रता दिवस भाषण सिर्फ़ भारत के इतिहास का सबसे लंबा भाषण नहीं था, बल्कि यह संप्रभुता का घोषणापत्र भी था. यह उस समय दिया गया जब वैश्विक गठबंधन बिखर रहे हैं, पाकिस्तान के साथ एक छोटा युद्ध अभी-अभी समाप्त हुआ है, और अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते बिगड़ रहे हैं.
लाल क़िले की प्राचीर से मोदी (PM Modi) ने भारत की गौरवशाली विरासत और समकालीन चुनौतियों को एक सूत्र में पिरोया. एक ऐसे वर्ष में जब 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले (26 लोगों की हत्या) और उसके जवाब में सेना की “ऑपरेशन सिंदूर” जैसी कार्रवाई हुई, मोदी ने अपने भाषण को राष्ट्रीय एकता, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक दृढ़ता पर केंद्रित किया. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रिकॉर्ड तोड़ते हुए लाल किले से यह उनका 12वां भाषण था. पीएम मोदी ने 103 मिनट का अब तक का सबसे लंबा भाषण दिया. इसमें नेहरू के “नियति से वादा” और मोदी के पूर्व वादों की झलक थी. उन्होंने इस क्षण को एक मोड़ बताया. भारत-पाकिस्तान तनाव, अमेरिका के साथ व्यापारिक व सुरक्षा मतभेद और वैश्विक अस्थिरता की पृष्ठभूमि में यह भाषण गहन संदेश लेकर आया. गहरे समुद्र से ऊर्जा खोज से लेकर माइक्रोचिप उत्पादन तक, नई पहलें और एक चुनौतीपूर्ण रणनीतिक रुख.
1947 से भारतीय नेताओं ने स्वतंत्रता दिवस भाषणों का उपयोग नई राष्ट्रीय दिशा तय करने के लिए किया है. मोदी का 2025 भाषण भी उसी परंपरा में खड़ा था. इंदिरा गांधी के लगातार भाषणों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए उन्होंने 12 बार लगातार लाल क़िले से संबोधन दिया; केवल नेहरू का 17 वर्षों का रिकॉर्ड अब तक लंबा है. भाषण में नेहरू के आदर्शों – बलिदान, संविधान, नियति – का उल्लेख था, किंतु मोदी ने इसे अपने अंदाज़ में नया रूप दिया. उन्होंने संविधान निर्माताओं और स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को नमन किया, बापू की दृष्टि और बाबा साहेब आंबेडकर जैसी विभूतियों को याद किया. साथ ही उन्होंने इसे समकालीन बनाया. उदाहरणस्वरूप, इस वर्ष भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को माओवादी विद्रोह की हार से जोड़ते हुए उन्होंने आदिवासी नायकों की विरासत का सम्मान किया. उन्होंने स्वतंत्रता को 140 करोड़ भारतीयों का “महान उत्सव” बताया और “हर घर तिरंगा” जैसे अभियानों से इसे जोड़ दिया.
2019 के “पंच प्रण” की तरह, मोदी (PM Modi) ने फिर से भविष्य की प्रतिज्ञाएं दोहराईं. 2047 तक विकसित भारत, हर निर्भरता से मुक्ति, विरासत पर गर्व और अटूट एकता. उन्होंने घोषणा की कि भारत “न रुकेगा, न झुकेगा” और यह भी कि “गुलामी का एक कण भी न कानून में रहेगा, न मन में.” उन्होंने सांस्कृतिक धरोहर को भारत का “मुकुटमणि” और “पहचान का सबसे बड़ा आभूषण” कहा. इस तरह भाषण ने भारत के वर्तमान क्षण को अतीत के बलिदानों का परिणाम और एक नए युग की शुरुआत, दोनों के रूप में चित्रित किया. जैसे नेहरू ने 1947 में किया था, वैसे ही पीएम मोदी ने अब बिखरती दुनिया में संप्रभुता को केंद्र में रखा.

राष्ट्रीय सुरक्षा

पीएम मोदी (PM Modi) ने हालिया भारत–पाकिस्तान संकट को सख़्त सुरक्षा नीति का आधार बनाया. उन्होंने कश्मीर में पहलगाम नरसंहार, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की हत्या हुई, का वर्णन “राष्ट्रीय घाव” के रूप में किया. इसके बाद 7 मई को शुरू हुआ ऑपरेशन सिंदूर, जिसने सैकड़ों किलोमीटर दुश्मन की सीमा में घुसकर आतंकी शिविरों को ध्वस्त किया. मोदी ने इसे अभूतपूर्व बताते हुए कहा, “दशकों से ऐसा नहीं हुआ था” और संकेत दिया कि अब यही ‘न्यू नॉर्मल’ है. भारत अब सीमा पार आतंकवाद या परमाणु धमकी बर्दाश्त नहीं करेगा.
इस सख़्त लहज़े को संतुलित भी किया गया. एक ओर मोदी ने चेतावनी दी कि “जो आतंकवाद को पालते हैं, वे भी समान शत्रु हैं” और भविष्य में “मुँहतोड़ जवाब” देने का वादा किया. यहाँ तक कि उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान शत्रुता जारी रखता है तो भारत सिंधु जल संधि को रद्द कर देगा – “ख़ून और पानी साथ नहीं बह सकते.” दूसरी ओर, उन्होंने इसे रक्षात्मक कार्रवाई बताया और राष्ट्रीय एकता का आह्वान किया. स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों का स्मरण कर उन्होंने सैन्य कार्रवाई को नैतिक न्याय का रूप दिया.
यह सुरक्षा की कहानी पूरे भाषण में बुनी गई, जिसमें सुरक्षा और नवाचार को जोड़ा गया. मोदी (PM Modi) ने कहा कि भारत की प्रौद्योगिकी क्षमता – उपग्रह, ब्रह्मोस मिसाइल, एस-400 एयर डिफेंस, स्टील्थ फाइटर ने पाकिस्तान के हमलों को विफल किया, लेकिन उन्होंने चेताया कि भविष्य की चुनौतियां निरंतर आधुनिकीकरण की मांग करती हैं. इसके लिए उन्होंने 2035 तक राष्ट्रीय रक्षात्मक ढाल तैयार करने के लिए “सुदर्शन चक्र मिशन” की घोषणा की. युद्ध के प्रतीकों, महाभारत का सुदर्शन चक्र, जन्माष्टमी, परमाणु शक्ति का उल्लेख कर उन्होंने भाषण को युद्धकालीन तत्परता का रंग दिया.

एकता और आत्मनिर्भरता का आह्वान

भाषण का केंद्रीय सूत्र था – विविधता में एकता और “आत्मनिर्भर भारत.” उन्होंने शुरुआत ही इस बात से की कि “140 करोड़ भारतीय तिरंगे के रंगों में रंगे हैं… एक ही स्वर, एक ही जयकार: मातृभूमि का गुणगान.” बार-बार “मेरे प्यारे देशवासियो” कहकर, माताओं-बहनों और बच्चों को संबोधित कर उन्होंने परिवार जैसी छवि बनाई. साथ ही उन्होंने चेताया कि जनसंख्या परिवर्तन और घुसपैठ एकता के लिए ख़तरा हैं – संकेत स्पष्ट था कि जनता को उन ताक़तों से सावधान रहना होगा जो एकता की डोर तोड़ सकती हैं.
सांस्कृतिक गर्व भी एक सूत्रधार रहा. मोदी ने भारत की धरोहर को “पहचान का सबसे बड़ा आभूषण” बताया और इसे समकालीन लक्ष्यों से जोड़ा. उन्होंने संविधान, स्वतंत्रता सेनानियों, संविधान सभा जैसे धर्मनिरपेक्ष प्रतीकों का स्मरण किया, वहीं भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र का उल्लेख कर रक्षात्मक शक्ति का प्रतीक दिया. इस तरह उन्होंने धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों ही भावनाओं को जोड़ते हुए कहा कि भारत की जड़ें ही उसकी ताक़त हैं.
“आत्मनिर्भरता” पूरे भाषण में गूंजती रही. मोदी (PM Modi) ने विदेशी ऊर्जा, खाद, तकनीक पर निर्भरता को दुर्भाग्य बताया और हर क्षेत्र में स्वदेशीकरण की योजनाएँ पेश कीं. उदाहरणस्वरूप, उन्होंने “राष्ट्रीय गहन जल अन्वेषण मिशन” की घोषणा की, जो समुद्र के भीतर तेल और गैस खोजकर भारत को ऊर्जा-स्वतंत्र बनाएगा – इसे उन्होंने “समुद्र मंथन” कहा. इसी तरह रणनीतिक खनिजों की घरेलू खदानें खोलने के लिए “नेशनल क्रिटिकल मिशन” को विस्तार दिया. सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्होंने कहा कि ऑपरेटिंग सिस्टम से लेकर साइबर सुरक्षा और एआई तक सबकुछ भारतीय प्रतिभा द्वारा विकसित होना चाहिए.
विशेष रूप से, मोदी ने सेमीकंडक्टर और ऊर्जा रणनीतियों का ज़िक्र किया. अमेरिकी दबाव और रूसी तेल आयात विवाद की पृष्ठभूमि में भारत ने वैकल्पिक ऊर्जा व तकनीकी योजनाएँ अपनाई हैं. गहरे समुद्र मिशन का उद्देश्य ऊर्जा स्वतंत्रता है, जबकि स्वदेशी चिप निर्माण योजनाएँ तेजी से आगे बढ़ रही हैं – भारत का पहला घरेलू सेमीकंडक्टर 2025 में लॉन्च होगा. स्टार्टअप, स्पेस मिशन और बायोटेक अनुसंधान का उल्लेख कर उन्होंने संदेश दिया कि भारत अब बाहरी मदद का इंतज़ार नहीं करेगा.

बदलती रणनीतिक मुद्रा: गुटनिरपेक्षता और संप्रभुता

भाषण ने भारत की बदलती विदेश नीति को भी संकेत दिया. मोदी का स्वर था “संप्रभुता सर्वोपरि” न कि किसी गठबंधन में बंधना. उन्होंने किसी ब्लॉक का नाम नहीं लिया, बल्कि इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से लेगा. 2025 में भारत ने बहु-संरेखीय (multi-alignment) नीति अपनाई. रूस से रक्षा और ऊर्जा संबंध गहरे किए, चीन से सावधानीपूर्वक संवाद (पहली बार 2020 के बाद मोदी चीन में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे), और पश्चिमी देशों से व्यापार व तकनीक में तभी सहयोग जहां भारतीय हित अनुकूल हों.
पाकिस्तान पर सख़्त बयान (सिंधु जल संधि की समीक्षा, परमाणु धमकी का जवाब) यह भी संकेत थे कि भारत अब वाशिंगटन की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा. साथ ही, UPI की वैश्विक सफलता और वैक्सीन स्वतंत्रता जैसे उदाहरण देकर उन्होंने बताया कि भारत को अमेरिकी तकनीकी नियमों या पश्चिमी दबाव की ज़रूरत नहीं. हाल ही में ट्रंप सरकार द्वारा भारतीय निर्यात पर 50% तक शुल्क लगाने के बाद मोदी ने आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी चिप योजनाओं को और ज़्यादा बल दिया, जिससे यह स्पष्ट संदेश था कि भारत अपनी सप्लाई चेन खुद बनाएगा.
वैश्विक मंच पर भी मोदी ने आश्वस्त करने का प्रयास किया, जबकि दुनिया व्यापार युद्ध, प्रॉक्सी युद्ध और जलवायु संकट से जूझ रही है, भारत स्थिर दृष्टि प्रस्तुत करता है. संविधान और कर्तव्य का उल्लेख कर उन्होंने भारत को नियम-आधारित लोकतंत्र बताया. घरेलू ऊर्जा और खनिज योजनाओं के ज़रिए संकेत दिया कि भारत तेल-राजनीति पर निर्भर नहीं रहेगा. विश्लेषकों के अनुसार, भारत अब “हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरकारी शक्ति” के रूप में उभर रहा है. संक्षेप में, यह भाषण उस बदलाव का प्रतीक था जिसमें भारत सहायता चाहने वाले विकासशील देश से एक बड़े शक्ति केंद्र की ओर अग्रसर है.

निष्कर्ष

नरेंद्र मोदी (PM Modi) का 2025 का स्वतंत्रता दिवस भाषण एक साथ अतीत की स्मृति और भविष्य की दृष्टि था. लाल क़िले से बहती शब्द-गंगा में उन्होंने भारत की विरासत और भविष्य की योजनाओं को जोड़ा. ऐतिहासिक रूप से उन्होंने संविधान निर्माताओं और स्वतंत्रता सेनानियों का स्मरण किया; रणनीतिक रूप से रक्षा, ऊर्जा, जनसांख्यिकी और तकनीक में नई योजनाएं पेश कीं. संदर्भ स्पष्ट था – एक ओर पहलगाम नरसंहार और ऑपरेशन सिंदूर, दूसरी ओर अमेरिका से बिगड़े संबंध. इन चुनौतियों का उत्तर उन्होंने आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत), स्वदेशीकरण (सुदर्शन चक्र मिशन, चिप निर्माण) और राष्ट्रीय एकता में खोजा.
साथ ही, उनका स्वर उत्साहपूर्ण और समावेशी रहा . नागरिकों से “कंधे से कंधा मिलाकर” राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनने का आह्वान किया. भाषण की ऐतिहासिक लंबाई और नए कार्यक्रमों ने यह भी दिखाया कि मोदी (PM Modi) ने संकटों को सामूहिक अवसर के रूप में प्रस्तुत किया.
संक्षेप में, यह भाषण सिर्फ़ अपनी अवधि या नाटकीयता से ऐतिहासिक नहीं था, बल्कि इसकी रणनीतिक संरचना ने इसे विशेष बना दिया. यह राष्ट्रवादी प्रेरणा, कल्याणकारी घोषणाओं और रक्षा प्रतिबद्धताओं का मिश्रण था, जिसका उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर और वैश्विक प्रभावशाली बनाना था. विश्लेषकों के शब्दों में, “टूटते वैश्विक संतुलन” में भारत चुपचाप “तीसरी धुरी” के रूप में उभर रहा है. लाल क़िले का यह भाषण उसी नई मुद्रा का उद्घोष था – एक अधिक आत्मविश्वासी और एकजुट भारत की दिशा में.
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