Nazaria Article: युद्ध की बेदर्द चाहत, अर्थव्यवस्था पर आफत

Upendrra Rai
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Chairman & Managing Director, Editor-in-Chief, The Printlines | Bharat Express News Network
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Sunday Special Article: इजरायल-हमास संघर्ष के लंबा खिंचने और इसके एकाधिक देशों में फैलने के अंदेशे से पूरी दुनिया सहमी हुई है। जिस तरह आज हर देश के अस्तित्व की पारस्परिक निर्भरता बढ़ी है, एक-दूसरे से हित-अहित कहीं ज्यादा गहराई से जुड़े हैं उसमें डर का यह भाव स्वाभाविक भी दिखता है। जाहिर तौर पर युद्ध विनाश लेकर आता है और विनाश विकास का दुश्मन होता है। तो जितना लंबा ये संघर्ष चलेगा, विकास के मोर्चे पर दुनिया का संघर्ष भी उतना ही कठिन होता जाएगा। ये चुनौती कितनी कठिन होगी, ये तो फिलहाल भविष्य के गर्त में है लेकिन कई सेक्टर में इसका असर अभी से दिखने लगा है जैसे आर्थिक क्षेत्र। विश्व युद्ध की आशंका से दुनिया भर के बाजार के हाथ-पैर फूलने लगे हैं। वैश्विक लामबंदी और इस संघर्ष के तुरंत खत्म नहीं होने के आसार ने डरे-सहमे बाजार में कैश फ्लो को अस्थिर बना दिया है। पूंजी निवेश शांति की खोज में दर-दर भटक रहा है और इस स्वाभाविक प्रकिया के कारण दुनिया के बाजारों में अप्रत्याशित उथल-पुथल देखने को मिल रही है।

सवाल यही है कि क्या जंग की आग में वैश्विक अर्थव्यवस्था की चिता भी जलने वाली है? विश्व बैंक ने तो खतरनाक मंदी के संभावित खतरे का अलर्ट भी जारी कर दिया है। दुनिया के बाजारों में इसका असर दिखाई देने लगा है, चाहे वह अमेरिका का मार्केट हो या फिर यूरोपीय यूनियन और मध्य-पूर्व या एशियाई देशों का बाजार। मजबूत आधार के बावजूद अमेरिका का शेयर बाजार अक्टूबर के 20 दिनों में ही दो फीसद तक गिर गया। हालांकि अमेरिका के लिए यह अहम है कि उसके बॉन्ड के प्रति भरोसा बढ़ा है लेकिन बाकी दुनिया तो भारी उतार-चढ़ाव के भंवर में उलझ गई है। आर्थिक मोर्च पर इस अनिश्चितता से लड़ने के लिए विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन ने घरेलू बाजार में 137 अरब डॉलर के ऋण पैकेज का एलान किया है। इजरायल-हमास युद्ध के मौजूदा दौर में ऐसी पहल कर चीन ने एक तरह से दुनिया को संदेश भी दे दिया है कि अब कमर कसने का वक्त आ गया है।

लेकिन युद्ध का खर्च इससे कहीं बड़ा होता है। इजरायल के अनुसार गाजा पर हमले का दैनिक खर्च 246 मिलियन डॉलर है। सिर्फ 21 दिन में यह खर्च 5,166 मिलियन डॉलर तक जा चुका है। यह सिर्फ इजरायल के युद्ध खर्च का आकलन है। फिलिस्तीन, लेबनान जैसे देशों के युद्ध पर खर्च का आकलन अभी बाकी है। खर्च की ही तरह निवेश अर्थव्यवस्था का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है और आईएमएफ का कहना है कि युद्ध के कारण इस पर बेहद बुरा असर पड़ने जा रहा है। मिस्र, लेबनान और जॉर्डन समेत मध्य-पूर्व के देशों की अर्थव्यवस्था इससे प्रभावित होगी। फिलिस्तीन में आर्थिक विकास दर 2022 में 3.9% वार्षिक थी। महंगाई को जोड़कर देखने से यह 1994 के स्तर पर जा पहुंचती है। ऐसे में युद्ध अगर आगे भी जारी रहा तो दुनिया तीन दशक पुराने स्तर तक पिछड़ सकती है।

इकॉनमिक वैल्यू ऑफ पीस रिपोर्ट 2021 के अनुसार युद्ध या हिंसक संघर्ष के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को 14.4 ट्रिलियन डॉलर का सालाना नुकसान होता है। अकेले हिंसा के कारण साल 2019 में दस से ज्यादा देशों की जीडीपी 20 से 60 फीसद तक प्रभावित हुई थी। सबसे ज्यादा मार झेलने वाले देश थे –
सीरिया – 59.1%
अफगानिस्तान – 50.3%
दक्षिण सूडान – 46.3%
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक – 37.5%
सोमालिया – 35.3%
नॉर्थ कोरिया – 30.6%
साइप्रस – 30.6%
इराक – 26.3%
वेनेजुएला – 24.1%
सूडान – 23.5%

ये आंकड़े बताते हैं कि युद्ध की सबसे ज्यादा मार गरीब देशों पर ही पड़ती है, आम लोगों को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। रूस-यूक्रेन युद्ध अभी चल ही रहा है। इस युद्ध से कई देशों की अर्थव्यवस्था पहले ही प्रभावित हो चुकी है। ऐसे में इजरायल-हमास संघर्ष का मतलब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का चरमराना है। फॉर्च्यून ने यूरोपीय यूनियन के हवाले से आगाह किया है कि संघर्ष लंबा खिंचने पर वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जाएगी और स्टॉक मार्केट में 20 फीसद तक की गिरावट आ सकती है। कच्चे तेल की कीमत 150 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है। आईएमएफ का अनुमान है कि कच्चे तेल की कीमत में 10 फीसद का उछाल आने से वैश्विक विकास दर 0.15 फीसद तक प्रभावित होती है। इसका असर 0.4 फीसद महंगाई के रूप में अगले वर्ष से दिखने लगता है। इजरायल-हमास युद्ध के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सीधे पड़ रहे असर को समझने के लिए इन बिन्दुओं पर गौर करना जरूरी है-

  • इजरायल-हमास युद्ध जारी रहता है तो ऊर्जा महंगी होती चली जाएगी जिससे पूरी दुनिया प्रभावित होगी।
  • कच्चा तेल महंगा हो सकता है। इसकी आपूर्ति में भी अस्थिरता रह सकती है।
  • समुद्री मार्ग बाधित होने से ग्लोबल ट्रेड पर बुरा असर होगा। एक अनुमान के मुताबिक इससे वैश्विक जीडीपी को 500 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। 2024 के अंत तक जीडीपी की विकास दर में 0.3 फीसद तक की कमी आने के आसार बन चुके हैं।
  • ग्लोबल शिपिंग चार्ज में बढ़ोतरी हो सकती है।
  • इन्श्योरेंस का प्रीमियम भी बढ़ सकता है।
  • यूक्रेन युद्ध के बाद से मंदी का सामना कर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था बड़ी मंदी का रुख कर सकती है।

केवल अर्थव्यवस्था ही नहीं, दुनिया के संतुलन में भी अव्यवस्था का खतरा भी गहराने लगा है।

  • दुनिया फिर से दो ध्रुवों में बंटती दिख रही है। एक ध्रुव पश्चिमी देशों का है, तो दूसरा रूस-चीन-ईरान का गुट।
  • इजरायल-अरब देशों के बीच के संबंध जो लगातार सुधर रहे थे, अब वह बेपटरी हो सकता है।
  • इजरायल-फिलिस्तीन के बीच दो राष्ट्र के सिद्धांत के आधार पर सुलझ सकने वाला विवाद अब अधर में लटक सकता है।
  • ईरान और इजरायल परमाण्विक शक्तियां हैं। ऐसे में परमाणु युद्ध छिड़ने की भी आशंका है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था और मानवता को भारी नुकसान हो सकता है।

भारत के संदर्भ में तो स्थिति और भयावह दिखती है। तात्कालिक प्रतिक्रिया के रूप में देश के शेयर बाजार से विदेशी पूंजी का पलायन तेज हो गया है। भारत में 6 अक्टूबर को सेंसेक्स 65,996 अंक पर था। यह 2,500 अंकों से ज्यादा गिरकर 63,705 अंकों तक का स्तर देख चुका है – यानी 21 दिन में 3.47 फीसद की गिरावट। निफ्टी में भी अक्टूबर महीने की 26 तारीख तक 3.98% की गिरावट देखने को मिली है। आने वाले दिनों में भी गिरावट का सेंटीमेंट देखते हुए फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्ट (एफपीआई) अपने धन को कहीं सुरक्षित जगह ले जाना चाहते हैं।

इतना ही नहीं, वैश्विक हालात देखते हुए भारतीय निर्यात को भी धक्का लगना तय है। अतिरिक्त बीमा खर्च भारत जैसे देश के लिए व्यापार को और दुष्कर बना देगा। भारतीय वस्तुओं को अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्पर्धा करने में दिक्कत होगी। 10.7 अरब डॉलर का भारतीय कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। आयात के मोर्चे पर भी भारत के इजरायल के साथ महत्वपूर्ण रक्षा संबंध हैं। ऐसे में अपने कंसाइनमेंट हासिल करने में भारत को मुश्किल आ सकती है और इसमें देरी भी हो सकती है। यहां ये बात उल्लेखनीय है कि इस वक्त इजरायल के साथ 74 हजार करोड़ रुपये का रक्षा सौदा प्रगति पर है। इतना ही नहीं, हमास-इजरायल युद्ध आगे बढ़ता है और अरब देश इसमें शामिल होते हैं तो समुद्री मार्ग से कारोबार भी प्रभावित होगा। स्वेज नहर मार्ग बाधित होने से भारत की यूरोपीय यूनियन तक पहुंच मुश्किल हो जाएगी जिससे व्यापार पर व्यापक असर पड़ेगा। यानी भारत के लिए भी इस संघर्ष के जारी रहने में चौतरफा नुकसान है।

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