ट्रंप की ट्रैवल बैन नीतियों ने बढ़ाई अंतरराष्ट्रीय छात्रों की मुश्किलें, हजारों छात्रों का सपना हुआ चकनाचूर   

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Trump travel ban policies: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रैवल बैन नीतियों ने अब अंतरराष्ट्रीय छात्रों की भी मुश्किलें बढ़ा दी है. खासकर अफगानिस्तान में तालिबानी महिलाओं के लिए. दरअसल, तालिबानी महिलाओं को कॉलेज जाने से रोकने के बाद उन्होंने अमेरिका में उच्च शिक्षा पाने का सपना देखा था, लेकिन डोनाल्‍ड ट्र्ंप ने उसे भी छीन लिया.

हजारों छात्रों का सपना चकनाचूर

बता दें कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगाए गए ट्रैवल बैन और 19 देशों के नागरिकों पर लगाए गए प्रतिबंधों का हजारों छात्रों पर प्रभाव पड़ा है. इनमें से कई छात्र ऐसे में भी है, जिन्‍होंने अमेरिका आने के लिए वर्षों की मेहनत और धन खर्च किया था, लेकिन अब वे असहाय महसूस कर रहे हैं.  हजारों छात्रों का उच्च शिक्षा हासिल करने का सपना अब चकनाचूर हो चुका है.

वीज़ा देरी भी बना बाधक

वहीं, कई अंतरराष्ट्रीय छात्र ऐसे भी है, जिन्हें अमेरिकी कॉलेजों में दाखिला मिल चुका था, लेकिन इस बार कैंपस नहीं पहुंच पाए. कुछ का वीज़ा आवेदन प्रक्रिया में फंसा हुआ है, जो ट्रंप प्रशासन द्वारा इस गर्मी में और जटिल बना दी गई. जबकि कुछ छात्रों ने अमेरिका की इमिग्रेशन नीतियों से परेशान होकर खुद ही न आने का फैसला किया, क्योंकि अचानक उनका कानूनी दर्जा खत्म कर दिया गया था.

ट्रैवल बैन वाले छात्र सबसे ज्‍यादा परेशान

बता दें कि बीते साल मई से सितंबर के बीच अमेरिकी विदेश विभाग ने ट्रैवल बैन वाले 19 देशों के नागरिकों को 5700 से अधिक F-1 और J-1 वीजा जारी किए, जिसमें से ईरान और म्यांमार के नागरिकों को आधे से अधिक वीजा मिले. वहीं, जिन छात्रों के ट्रैवल को बैन किया गया, वह सबसे ज्यादा परेशानी में हैं.

12 देशों पर पूरी तरह से प्रतिबंध

दरअसल, ट्रंप प्रशासन ने ट्रैवल बैन ने अफ्रीका, एशिया, मध्य पूर्व और कैरिबियन के 12 देशों के नागरिकों पर अमेरिका के लिए नए वीजा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि कुछ मामलों में ग्रीन कार्ड धारकों, ड्यूल सिटिज़न्स और कुछ खिलाड़ियों को छूट है, लेकिन 7 अन्य देशों पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं जो स्टूडेंट वीजा पर भी असर डालते हैं. बता दें कि ट्रंप ने यह प्रतिबंध जून के महीने में “वीज़ा ओवरस्टे” और “राष्ट्र सुरक्षा” के नाम पर लगाया था. उनका कहना है कि इन देशों की स्क्रीनिंग प्रक्रिया कमजोर है और जब तक इन्हें दुरुस्त नहीं किया जाता, बैन जारी रहेगा.

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