Mount Gorichen: भारतीय सेना ने साहस, अनुशासन और टीम वर्क का शानदार प्रदर्शन करते हुए पूर्वी हिमालय की सबसे ऊंची चोटियों में से एक, माउंट गोरिचेन पर सफलतापूर्वक चढ़ाई पूरी की. इस चोटी की ऊंचाई 21,286 फीट यानी 6,488 मीटर है. वहीं, इस अभियान ने सेना की साहसिक भावना और परिचालन उत्कृष्टता को दर्शाया.
बता दें कि यह अभियान 20 अगस्त को लिकाबाली सैन्य स्टेशन से स्पीयर हेड डिवीजन के जीओसी द्वारा हरी झंडी दिखाकर शुरू हुआ. वहीं, इससे पहले 13 अगस्त को टोही, संपर्क और समन्वय के लिए अग्रिम दल रवाना हुआ था. अभियान दल मिसामारी, टेंगा और सेंगे (9,500 फीट) होते हुए आगे बढ़ा, जहां सैनिकों ने कठिन चढ़ाई के लिए शारीरिक और मानसिक अनुकूलन प्रशिक्षण लिया.
अदम्य साहस और गौरव का प्रतीक
इसके बाद 1 सितंबर को मागो रोड हेड (12,200 फीट) से चढ़ाई शुरू हुई. दल ने मेराथांग बेस कैंप, चोकरसुम कैंप और समिट कैंप स्थापित करते हुए कठोर मौसम, बर्फीली चोटियों और तेज हवा का सामना किया. इस दौरान सैनिकों ने रस्सियां बांधी, मालवाहक नावें ढोईं और मध्यवर्ती शिविर बनाए. वहीं, 19 सितंबर को स्पीयर कोर के सैनिकों ने माउंट गोरिचेन के शिखर पर पहुंचकर राष्ट्रीय ध्वज फहराया, जो भारतीय सेना के अदम्य साहस और गौरव का प्रतीक बना.
झंड़ी दिखाकर हुई अभियान की समाप्ति
वहीं, वापसी यात्रा में दल ने स्थापित शिविरों और मुख्य मार्गों का उपयोग किया. 3 अक्टूबर को दीमापुर में जीओसी स्पीयर कोर, लेफ्टिनेंट जनरल एएस पेंढारकर, एवीएसएम, वाईएसएम ने झंडी दिखाकर अभियान की समाप्ति की.
रक्षा मंत्रालय ने बताया राष्ट्रीय गौरव का क्षण
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसे राष्ट्रीय गौरव का क्षण बताया. इस अभियान से युवाओं को प्रेरणा मिलेगी और सेना की साहसिक भावना को देश-विदेश में पहचान मिलेगी. माउंट गोरिचेन अभियान ने भारत की सैन्य शक्ति और साहसिक चरित्र को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया.
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