नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार में मदद करने वाले बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) की लागत देश में तेजी से कम हो रही है और अब यह लगभग 2 रुपए प्रति यूनिट के करीब पहुंच गई है. सरकार के अनुसार, इसका मुख्य कारण घटती उत्पादन लागत और मजबूत सरकारी समर्थन हैं. विद्युत मंत्रालय ने सोमवार को बताया कि FY22-23 में, जब बैटरियों का उपयोग रोजाना दो बार किया जाता था, तब बैटरी स्टोरेज की लागत लगभग 10.18 रुपए प्रति यूनिट थी.
बैटरियां औसतन रोजाना 1.5 बार होंगी इस्तेमाल
इसमें आगे कहा गया कि हाल ही में आयोजित निविदाओं में बिना किसी सरकारी सब्सिडी सहायता के यह लागत घटकर 2.1 रुपए प्रति यूनिट हो गई. हालांकि, बाजार में वर्तमान ट्रेंड को देखते हुए, अनुमान है कि बैटरियां औसतन रोजाना 1.5 बार इस्तेमाल होंगी. इस स्तर पर बैटरी स्टोरेज की लागत करीब 2.8 रुपए प्रति यूनिट तक पहुंच जाएगी, जो सौर ऊर्जा परियोजनाओं से उत्पादन की कीमत के करीब है, जो 2.5 रुपए प्रति यूनिट के आसपास है.
बैटरी स्टोरेज अब नवीकरणीय ऊर्जा के साथ अधिक प्रतिस्पर्धी
यह कीमत स्पष्ट रूप से दिखाती है कि बैटरी स्टोरेज अब नवीकरणीय ऊर्जा के साथ अधिक प्रतिस्पर्धी और व्यावहारिक बन गई है. सरकार ने इसकी लागत को और कम करने के लिए विभिन्न वित्तीय सहायता योजनाएं शुरू की हैं. ऊर्जा मंत्रालय ने वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) योजना के तहत 13,220 मेगावाट-घंटे की बैटरी स्टोरेज क्षमता स्थापित करने के लिए 3,760 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया है.
जून 2025 में एक नई वीजीएफ योजना की गई शुरू
इसके अलावा, जून 2025 में एक नई वीजीएफ योजना शुरू की गई है, जिसके तहत 30 गीगावाट घंटे की बैटरी स्टोरेज क्षमता का विकास होगा, जिसे पावर सिस्टम डेवलपमेंट फंड से 5,400 करोड़ रुपए की सहायता मिलेगी. मंत्रालय के अनुसार, बैटरी स्टोरेज की लागत में आई यह गिरावट भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति का संकेत देती है. सरकार के उपायों और समर्थन की वजह से बैटरी स्टोरेज अब और अधिक किफायती और प्रतिस्पर्धी बन रही है, जो आने वाले समय में ऊर्जा की स्थिरता बढ़ाने और कीमतों में कमी लाने में मदद करेगी.

