एनर्जी के क्षेत्र में वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि, अब AI से मिलेगी असीमित स्वच्छ ऊर्जा

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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AI Clean Energy: भारत के क्लीन एनर्जी भविष्य की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि सामने आई है न्यूक्लियर फ्यूजन में विज्ञानियों को एक महत्वपूर्ण सफलता मिली है, जिससे दुनिया असीमित स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने की दिशा में और करीब पहुंच गई है. दरअसल, ब्रिटेन और आस्ट्रिया के विज्ञानियों ने एक नया एआई उपकरण गाइरोस्विन विकसित किया है, जो न्यूक्लियर रिएक्टर के अंदर अत्यधिक गर्म प्लाज्मा को सिमुलेट कर सकता है.

सुपरकंप्यूटरों को भी कर देगा फेल

बता दें कि यह उपकरण उन गणनाओं को कुछ ही सेकेंड में पूरा कर लेता है, जिन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटरों को भी पूरा करने में कई दिन लगते हैं. लेकिन समस्या ये है कि फ्यूजन रिएक्टरों में अत्यधिक गर्म प्लाज्मा टरबुलेंस नामक प्रक्रिया में उछलता रहता है. टरबुलेंस के कारण प्लाज्मा अपने चुंबकीय क्षेत्र से बाहर निकल जाता है, जिससे फ्यूजन प्रतिक्रिया की क्षमता कम हो जाती है.

मौजूदा समय में फ्यूजन प्रतिक्रिया का रिकार्ड वेंडेलस्टीन 7-एक्स फ्यूजन उपकरण के पास है, जिसने 43 सेकेंड तक फ्यूजन बनाए रखा. इसे अनिश्चित काल तक जारी रखने के लिए, विज्ञानियों को विभिन्न परिस्थितियों में टरबुलेंस के निर्माण की अत्यंत सटीक सिमुलेशन की आवश्यकता होती है. गाइरोस्विन रिएक्टरों को अनिश्चित काल तक फ्यूजन बनाए रखने में मदद कर सकता है.

सूर्य की नकल करते हैं फ्यूजन रिएक्टर

बता दें कि न्यूक्लियर फ्यूजन में स्वच्छ ऊर्जा का लगभग अनंत स्रोत बनाने की क्षमता है. इसमें केवल दो प्रकार के हाइड्रोजन, ड्यूटेरियम व ट्रिटियम की आवश्यकता होती है, जबकि एकमात्र उप-उत्पाद हीलियम है. इसका मतलब है कि इससे न तो लंबे समय तक रहने वाले रेडियोधर्मी कचरे के ढेर बनेंगे और न ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होगा जिससे पृथ्वी को नुकसान पहुंचे.

फ्यूजन रिएक्टर सूर्य के केंद्र में होने वाली प्रक्रियाओं की नकल करते हैं, जहां हाइड्रोजन परमाणु आपस में टकराकर हीलियम में परिवर्तित होते हैं. हालांकि, पृथ्वी पर एक लघु तारा बनाने के लिए

प्लाज्मा को लगभग 10 करोड़ सेंटीग्रेड तक गर्म करना और फ्यूजन के लिए इसे पर्याप्त गर्म और सघन बनाए रखना आवश्यक है. चूंकि कोई भी पदार्थ इतने अधिक तापमान को सहन नहीं कर सकता, इसलिए विज्ञानी टोकामाक नामक अंगूठी के आकार के उपकरण का उपयोग करके प्लाज्मा को चुंबकीय पिंजरे में फंसा लेते हैं.

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