काशी में इस दिन खेली जाएगी मसान की होली, जानिए तिथि और महत्व

Abhinav Tripathi
Abhinav Tripathi
Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Varanasi Masan Holi 2024: हिंदू धर्म में होली के त्योहार का काफी महत्व है. होली के त्योहार का जश्न एक महीने पहले से ही शुरू हो जाता है. इस पर्व को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. होली का ये पर्व देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है. इस साल होली का पर्व 25 मार्च को मनाया जाएगा.

इन सब के बीच आज हम आपको एक ऐसी होली के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने आप में काफी अलग है. होली के त्योहार पर लोग रंग गुलाल उड़ाते हैं एक दूसरे को रंग लगाते हैं. ठीक इसके इतर देश का एक ऐसा भी शहर है जहां होली रंगों- गुलाल से नहीं बल्कि चिता की राख से खेली जाती है. आइए आपको इसके बारे में बताते हैं.

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इस शहर में खेली जाती है चिता की राख से होली

दरअसल, हम बात कर रहे हैं बनारस की मशहूर मसान के होली की. वाराणसी यानी काशी में मसान की इस होली में चिता की राख से होली खेली जाती है. ये होली रंगभरी एकादशी के अगले दिन खेली जाती है. मसान की होली वाराणसी स्थित मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है. इस दौरान एक दूसरे को भस्म लगाया जाता है और हवा में राख उड़ाई जाती है. इस दिन काशी में आए लोग बाबा विश्वनाथ के रंग में रंगे नजर आते हैं इतना ही नहीं इस खास दिन पर भगवान शिव और पार्वती की पूजा भी की जाती है.

कब खेली जाएगी मसान वाली होली

जानकारी दें कि प्रतिवर्ष फाल्गुन मास के शुल्क पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रंगभरी एकादशी मनाई जाती है. इसके ठीक अगले दिन वाराणसी में मसान की होली खेली जाती है, इस साल 21 मार्च यानी कल मसान की होली खेली जाएगी. इस दिन बाबा विश्वनाथ के भक्त चिता की राख से होली खेलते हैं. इस होली को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर से लोग आते हैं.

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इस होली का है धार्मिक महत्व

मसान वाली होली काशी के मणिकर्णिका घाट पर काफी धूमधाम से खेली जाती है. ये होली रंगभरी एकादशी के अगले दिन खेली जाती है. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को भस्म काफी पंसद है, इस वजह से लोग यहां पर भस्म से होली खेलते हैं. अगर पौराणिक मान्यताओं की मानें तो रंगभरी एकादशी के दिन भगवान भोले शंकर माता पार्वती को विदा कराकर कैलाश लाए थे. उनके आने की खुशी में शिवगण ने चिता से होली खेली थी. माना जाता है कि इस दिन सारे देवी देवता मसान घाट पर आकर चिता की राख से होली खेलते हैं.

चिता की राख से क्यों खेली जाती है होली

दरअसल, शंकर भगवान को भस्म पसंद है. इस वजह से इस खास दिन पर उनकी भस्म से आरती भी की जाती है. वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त चिता की राख से होली खेलते हैं. हालांकि, कुछ लोगों को इस होली में शामिल होने से मना भी किया जाता है. वो लोग जिनके किसी अपने की मृत्यु हो गई हो और वो घाट पर उसके शव को जलाने के लिए लाएं हों, ऐसे लोग इस होली में शामिल नहीं हो सकते हैं. रंगभरी एकादशी के दिन चिता की राख को इकट्ठा कर लिया जाता है. इसके अगले दिन ये होली मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है.

(अस्वीकरण: लेख में दी गई जानकारी सामान्य मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर लिखी गई है. ‘द प्रिंटलाइंस’ इसकी पुष्टी नहीं करता है)

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