बाहर की पूजा की अपेक्षा मानसिक पूजा सौ गुना अधिक देती है लाभ: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मानसिक पूजा- शिव-शंकर की मानसिक पूजा भी बहुत सुलभ है और बहुत अच्छी है। बाहर पूजा करते हो, तब ठीक है लेकिन यदि बाहर पूजन न कर सको तब मानसिक पूजन कर लेना चाहिए। मानसिक पूजन हम आपको बता देते हैं। याद कर लेने से बहुत लाभ होता है। लिखा है-
“मानसी सा मता परा” बाहर की पूजा की अपेक्षा मानसिक पूजा दस गुना क्या सौ गुना अधिक लाभ देती है। बाहर के पूजन में विधि-विधान की आवश्यकता है, शुद्धि-अशुद्धि, सूतक-पातक, सबका विचार है। लेकिन मानसिक पूजन में शुद्धि-अशुद्धि, सूतक-पातक आदि का कोई विचार नहीं है। कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय पूजन किया जा सकता है।
मान लीजिए कि आप यात्रा में हैं, भगवान शंकर की मूर्ति नहीं मिली, तब सूर्य मण्डल के अंदर उनका ध्यान करके मन से पुष्पादि अर्पण कर दो। चन्द्र मण्डल के अन्दर भी पूजा हो सकती है। जल के अन्दर भी पूजा हो सकती है। शिव हाथ में भी बन जाते हैं। अपनी अंगुलियों से बनाकर पूजा कर लो। कहीं भी पूजन कर लो। बस भावना होनी चाहिए।
जिन्ह की रही भावना जैसी।
 प्रभु मूरति देखी तिन्ह तैसी।।
मानसिक पूजा आदि शंकराचार्य की लिखी हुई है। हम आपको भावार्थ सहित बता देते हैं। पूजन करते समय सीधे बैठ जाओ और ऐसे ध्यान करो कि दिव्य रत्नों से जड़ित आसन हमने बिछा दिया है और भोलेनाथ का ध्यान किया कि प्रभु! हम आपका पूजन करना चाहते हैं, आप आकर हमारे हृदय में प्रकट हो जाएं। फिर ऐसी भावना करें कि जैसे अमरनाथ में स्वयंभू भोलेनाथ प्रकट होते हैं, वैसे वह हमारे हृदय में प्रकट हो गये हैं।
रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरम्।
जब आपने देखा कि अन्दर दिव्य शिव प्रकट हो गये हैं, तब दिव्य आकाश गंगा के निर्मल जल से उन्हें स्नान कराओ, भावना से स्नान कराओ। फिर दूध से और दही से स्नान कराओ। उसके बाद घृत से, शहद से और फिर भूरा उर्फ पिसी हुई चीनी से सब साफ कर दो। फिर भावना के द्वारा बहुत मुलायम दिव्य तौलिया लेकर और हृदय में विराजमान शंकर का तौलिए से प्रोक्षण कर रहे हैं, मानो पोंछ रहे हैं। दिव्य से दिव्य मूर्ति की कल्पना करें।
आप हीरे की मूर्ति बना सकते हैं, नीलमणि या स्फटिक की मूर्ति बना सकते हैं। आप अपने अन्दर के राजा हो, कुछ भी कर सकते हो। आदि शंकराचार्य जब प्रसाद भोग लगाते हैं, तब वह कहते हैं कि प्रभु ! हम आपको दस हजार  सब्जियों का भोग लगाते हैं। कहा गया कि दस हजार सब्जियां मिलती कहां होगी? वह बोले की खरीद कर थोड़ो ही लानी है, मन से कल्पना करने में कंजूसी क्यों करें? जब मन से भावना करनी है, तब दिव्य से दिव्य भावना करो।
दिव्य तौलिये से प्रोक्षण के बाद, उन्हें वस्त्र चढ़ाओ। सुगन्धित इत्र भगवान को अर्पित करो। फिर उन्हें चंदन समर्पित करो, चंदन में कपूर, केसर और कस्तूरी मिश्रित करके भगवान शंकर को ठंडा-ठंडा त्रिपुंड लगाना चाहिए। तीन उंगलियों में चंदन लगाकर मस्तक पर लगाने से त्रिपुण्ड बन जाता है। फिर प्रभु को चावल अर्पण करो।
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चन्दम्।
जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्प च——-।
अब उसके बाद मोगरा, गुलाब, कमल पुष्प भोलेनाथ को अर्पण करो। वास्तव में मिले या न मिले भावना से तो अर्पण कर ही सकते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण पूजा, आरती दंडवत प्रणाम मन से करने से सम्पूर्ण पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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