Sawan 2025: ऐसा मंदिर जहां अकेले विराजमान हैं भगवान शिव, 5300 साल से बाहर बैठ मां पार्वती कर रहीं इंतजार!

Divya Rai
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Content Writer The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Sawan 2025 Special Story: देवों के देव महादेव का बेहद प्रिय महीना सावन आज से शुरू हो चुका है. इस समय शिवालयों में शिव भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है. आप भी अगर भगवान शिव की पूजा करते हैं और उनके मंदिर जाते हैं तो आपने जरुर ध्यान दिया होगा कि गर्भ गृह में बीच में शिवलिंग और पास में ही नंदी के साथ माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय जी विराजमान होते हैं. हालांकि, आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां भोलेनाथ तो गर्भ गृह में विराजमान हैं और माता पार्वती दरवाजे के बाहर बैठकर उनके बाहर निकलने का इंतजार कर रही हैं. इस मंदिर का वर्णन शास्त्रों में भी पाया जाता है.

जानिए कहां है ये मंदिर

आपको बता दें कि दुनिया का शायद इकलौता शिव मंदिर वृंदावन में है, जहां भगवान भोले नाथ गर्भगृह में विराजमान हैं और माता पार्वती दरवाजे के बाहर बैठकर उनके बाहर निकलने का इंतजार कर रही हैं. बताया जाता है कि द्वापर युग यानी करीब 5300 साल पहले इस मंदिर की स्थापना की गई थी. श्रीमद भागवत महापुराण में इस मंदिर और भगवान शिव के गोपेश्वर रूप का वर्णन मिलता है. श्रीमद भागवत महापुराण के वर्णित एक प्रसंग में पता चलता है कि वृंदावन में स्थापित यह मंदिर उसी समय का है जब भगवान कृष्ण ने महारास रचाया था. भगवान शिव खुद इस महारास को देखने के लिए यहां पर आए थे.

वर्णन के अनुसार इस महारास में भगवान कृष्ण अकेले पुरुष थे. उनके साथ साथ लाखों गोपियां थीं. भगवान शिव ने भी इस महारास में प्रवेश का प्रयत्न किया था, परंतु गोपियों ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया. इस परिस्थिति में एक गोपी ने उनको स्त्री रूप धारण करने की सलाह दी. उस गोपी की सलाह पर भगवान शिव ने साड़ी पहनी, नाक में बड़ी सी नथुनी पहनी, कानों में बाली पहनी और 16 श्रृंगार किए. इसके बाद वह महारास में शामिल हो पाए थे.

भगवान शिव का पीछा करते पहुंची मां पार्वती

श्रीमद भागवत महापुराण के अनुसार उस समय पहली बार ऐसा हुआ था जब भगवान शिव माता पार्वती को बिना बताए कैलाश से बाहर निकले थे. इस बात की जानकारी जैसे माता पार्वती को हुई वह भगवान शिव का पीछा करते हुए वृंदावन पहुंच गईं. यहां पर उन्होंने देखा कि भगवान शिव शंकर नथुनिया वाली गोपी बने हैं और भगवान कृष्ण के साथ गलबहियां कर रास रचा रहे है. भगवान शिव का यह रूप देखकर माता पार्वती मोहित हो गईं. इस दौरान माता पार्वती ने सोचा कि वह भी अंदर जाकर इस महारास में शामिल हो जाएं, हालांकि, माता पार्वती को इस बात का डर था कि वह भी स्त्री से पुरुष बन गईं तो क्या होगा.

मंदिर के बाहर इंतजार करती रहीं मां पार्वती

इसी बात को सोचते हुए माता पार्वती गर्भगृह के बाहर भगवान शंकर का इंतजार बाहर दरवाजे पर ही बैठकर करने लगीं और भगवान शिव को बाहर बुलाने के लिए इशारा करने लगीं. उस दौरान भगवान शिव ने कहा कि अभी वह यहीं रहेंगे. उसी समय से भगवान शिव साक्षात गोपेश्वर महादेव के रूप में यहां विराजमान हैं. वहीं, गर्भगृह के बाहर माता पार्वती उनके इंतजार में बैठी हैं. मान्यता है कि आज भी भगवान शिव नथुनिया पहनकर गोपी बनते हैं. विशेष तौर पर शरद पूर्णिमा की रात यानी महारास के दिन भगवान शिव 16 श्रृंगार धारण करते हैं. सावन में तो यहां पर भीड़ होती ही है, लेकिन सबसे ज्यादा श्रद्धालु शरद पूर्णिमा को भगवान भोले शंकर का दर्शन पाने के लिए यहां पर आते हैं.

(अस्वीकरण: लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर लिखी गई है. ‘द प्रिंटलाइंस’ इसकी पुष्टी नहीं करता है.)

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