Valmiki Jayanti: खूखांर डाकू कैसे बने महर्षि? जानिए ‘रामायण’ के रचयिता की दिलचस्प कहानी

Divya Rai
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Content Writer The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Valmiki Jayanti: संस्कृत साहित्य के महान कवि वाल्मीकि जी की आज जयंती मनाई जा रही है. रामायण जैसे महान ग्रंथ की रचना करने वाले वाल्मीकि जी ने जीवन, धर्म और मानवता के प्रति गहरे विचार प्रस्तुत किए, उनकी शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं. ऐसे में आज हम आपको महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी बताने जा रहे हैं.

बचपन में हुआ था म‍हर्षि का अपहरण Valmiki Jayanti

मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के पुत्र थे. इनका असली नाम रत्नाकर था. ऐसा कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि जब छोटे थे, तो एक भीलनी ने उनका अपहरण कर लिया. फिर उसी भीलनी समाज ने वाल्मीकि का पालन पोषण भी किया. भील समुदाय उस वक्त जंगल में राहगीरों को लूटा करते थे. जिसकी वजह से महर्षि वाल्मीकि भी एक डकैत बन गए. भील समुदाय के लोगों के साथ मिलकर महर्षि भी लोगों को लूटते थे.

इस घटना ने बदल दी म‍हर्षि की जिंदगी

ऐसी मान्यता है कि एक बार डाकू रत्नाकर ने नारद जी को लूटने की कोशिश की थी. तब नारद मुनि ने रत्नाकर को समझाया कि लूट-पाट करने से तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा. उनकी ये बात सुनकर रत्नाकर उनसे कहते हैं कि मैं ये सब अपने परिवार के लिए करता हूं. इसके बाद नारद मुनि उनसे पूछते हैं कि क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारे बुरे कर्मों के भागीदार बनेंगे? जिसके पश्चात रत्नाकर नारद मुनि को पेड़ से बांध देता है और घर जा कर अपने घरवालों से यही प्रश्न दोहराता है. जिस पर उनके परिवार के सदस्य इनकार कर देते हैं. अपने घरवालों की ये बातें सुनकर रत्नाकर को झटका लगता है और उन्हें पछतावा होने लगता है.

ब्रह्मा जी ने दिया ज्ञान का वरदान

पाप के रास्ते छोड़कर रत्नाकर नारद जी से पूछते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए. तब नारद जी उन्हें राम नाम का जाप करने की सलाह देते हैं, लेकिन रत्नाकर के पापों के कारण उनके मूंह से अज्ञानतावश मरा-मरा निकलने लगता है. इस पर नारद मुनि उनसे कहते हैं कि इसी का जाप करते रहो. राम इसी में छुपे हैं. मान्यताओं के अनुसार, रत्नाकर के मन में भगवान राम की ऐसी भक्ति जगी कि उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट होते हैं और उनके शरीर पर बांबी देखकर उन्हें वाल्मीकि नाम देते हैं. ब्रह्मा जी वाल्मीकि को ज्ञान का वरदान देते हैं. यहीं से प्रेरित होकर महर्षि वाल्मीकि महाकाव्य रामायण की रचना करते हैं.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई पौराणिक मान्यताओं और प्रचलित किवदंतियों पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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